नारी सशक्तिकरण वैदिक काल से आधुनिक काल तक - Women empowerment vedic to modren time

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नारी ईश्वर की एक अनुपम संरचना है, वह सृष्टि की आधारभूता है। नारी जो जननी है माँ है त्याग और बलिदान की मूर्ति है। नारी वो है जो देवी तुल्य लक्ष्मी स्वरूपा है
 नारी का सबसे पवित्र रूप मां के रूप में दिखाई देता है। 

क्योकि नारी का यह रूप निस्वार्थ की भावना से परिपूर्ण होता है। माता अर्थात जननी, मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। मां देवकी (कृष्ण) तथा मां पार्वती (गणेश / कार्तिकेय) के रूप में हम देख सकते हैं।

प्राचीन युग से ही हमारे समाज में नारी का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। हमारे शास्त्रों और पौराणिक ग्रंथों में नारी को पूज्यनीय एवं देवीतुल्य माना गया है । हमारी सदैव से यही धारणा रही है कि देवी एवं देवता भी वहीं पर निवास करते हैं जहाँ पर समस्त नारी जाति को प्रतिष्ठा व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। 

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्त फलाः क्रिया"॥ अर्थात् जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं जहां ऐसा नहीं होता वहाँ समस्त क्रियाएं व्यर्थ होती है।

इस कथन की आज भी उतनी ही महत्ता है जितनी कि प्राचीन काल में थी। यह विचार भारतीय संस्कृति का आधार स्तंभ है। भारत में स्त्रियों को सदैव उच्च स्थान दिया गया है। 

कोई भी मनुष्य ,परिवार, समाज अथवा राष्ट्र तब तक वास्तविक अर्थों में प्रगति की ओर अग्रसर नहीं हो सकता जब तक वह नारी के प्रति भेदभाव, निरादर अथवा हीनभावना  का त्याग नहीं कर देता है। 

नारी समाज का दर्पण है। वह एक सभ्य समाज की निर्मात्री है वह अपने संस्कारो के द्वारा एक सभ्य समाज का निमार्ण करती है। किसी भी राष्ट्र की प्रतिष्ठा, गरिमा, उसकी समृद्धि से  नहीं अपितु उस राष्ट्र के सुसंस्कृत व चरित्रवान नागरिकों से होती हैं। स्त्री मार्गदर्शक है वह एक प्रेरक शक्ति है वह जैसा भी दृश्य  अपने परिवार के समक्ष रखती है परिवार व बच्चे उसी प्रकार बन जाते हैं। 

सर्वप्रथम नारी परिवार का निर्माण करती है परिवार से घर बनता है,घर से समाज का निर्माण होता है तथा समाज से देश का निर्माण होता हैनारी के बगैर इस समाज की  या यूँ कहें की इस सृष्टि की कल्पना करना ही व्यर्थ है

नारी है तो जीवन  है नारी के बगैर तो जीवन भी संभव नहीं है। जो नारी अपने गर्भ से एक नये जीवन को जन्म देकर एक नए समाज का निर्माण करती  है वर्तमान समय मे उसी समाज मे उसी नारी का जीवन अंधकार  मे है, यही सत्य है इस सत्य को झुठलाना संभव नहीं है। 

यह सत्य है की हमारे समाज मे नारी को एक उच्च दर्जा प्राप्त है फिर भी उसे वह सम्मान नहीं मिल पाता जिस सम्मान की वह अधिकारिणी है। 

इसका मुख्य कारण यह है की सदियों से ही हमारा समाज एक पुरुष प्रधान समाज रहा है। जिसकी रूढ़िवादिता सोच ने नारी से उसके उन समस्त अधिकारों को छीन लिया था जिसकी वह अधिकारिणी थी। आइये देखते है की समय -समय पर हमारे समाज मे नारी की क्या स्थिति थी।
        
वैदिक काल मे नारी का सशक्तिकरण :- वैदिक काल में  नारी को विशेष सम्मान व पूज्यनीय दृष्टि से देखा जाता था । सीता, सती-सावित्री, अनसूया, गायत्री आदि अनगिनत नारियों ने अपने संस्कारो और अपने कार्यो द्वारा इस समाज मे अपना विशिष्ट स्थान प्राप्त किया है । 

वैदिक काल में नारी अध्यन- अध्यापन से लेकर रणक्षेत्र में भी जाती थी| जैसे कैकयी महाराज दशरथ के साथ युद्ध में गई थी तत्कालीन समाज में किसी भी विशेष  कार्य जैसे पूजा तथा यज्ञ आदि को निर्विघ्न रूप से पूर्ण करने के लिए नारी की उपस्थिति महत्वपूर्ण समझी जाती थी। उस काल की नारियाँ शिक्षित होती थीं  उन्हें  स्वयंवर के रूप मे अपना वर चुनने की आजादी थी । 


मध्यकाल 
मे नारी का सशक्तिकरण :- मध्यकाल में देश पर हुए अनेक आक्रमणों के पश्चात् नारी की दशा में भी परिवर्तन आने लगा। उसकी स्तिथि दयनीय हो गयी। नारी की स्वयं की विशिष्टता एवं उसका समाज में स्थान क्षीण होता चला गया।

आधुनिक काल मे बाल विवाह, पुनर्विवाह पर रोक, बहुविवाह, राजपूत महिलाओं द्वारा जौहर, देवदासी प्रथा जैसी कुरीतियों के माध्यम से नारी जाति का शोषण आरंभ हो गया। विदेशी आक्रमणों व उनके अत्याचारों के अतिरिक्त भारतीय समाज में आई सामाजिक कुरीतियाँ, तथा हमारी परंपरागत रूढ़िवादिता ने भी भारतीय नारी को दीन-हीन कमजोर बनाने में अहम भूमिका अदा की ।  

इसके बावजूद अनेक नारियों ने संघर्ष करते हुए राजनीति, साहित्य, शिक्षा और धर्म के क्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धियां को प्राप्त किया। गोंड रानी दुर्गावती, रानी नूरजहां, शिवाजी की माता जीजाबाई जैसी महिलाओं ने नारी जाति को गौरव प्रदान किया।

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ब्रिटिश शासन 
मे नारी का सशक्तिकरण :- अंग्रेजी राज में नारियों की स्थिति में धीमी गति से सुधार आना आरंभ हुआ। अंग्रेजी शासनकाल में भी रानी लक्ष्मीबाई, चाँद बीबी आदि नारियाँ अपवाद ही थीं जिन्होंने अपनी सभी रूढ़िगत परंपराओं आदि से ऊपर उठ कर इतिहास के पन्नों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी ।

स्वतंत्रता संग्राम में भी भारतीय नारियों के योगदान की अनदेखी नहीं की जा सकती है। आजादी की लड़ाई में अनेक महिलाओं जैसे डॉ. एनी बेसेंट, विजयलक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गांधी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। सुभाष चंद्र बोस के सेना की एक कैप्टन लक्ष्मी सहगल थीं।
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स्वतंत्र 
भारत मे नारी का सशक्तिकरण :- आजाद भारत मे आजादी के बाद सन् 1950 में जब देश को संविधान मिला तो उसमें स्त्रियों को सुरक्षा, सम्मान और पुरुषों के समान अवसर व अधिकार मिले किंतु अशिक्षा, पुरातनवादी सोच तथा कमजोर सामाजिक ढांचे के कारण नारी जाति उन अवसरों और अधिकारों का पूर्ण रूप से लाभ न उठा पाई। 

अपने बचपन में वह पिता, जवानी में पति तथा वृद्धावस्था में पुत्र पर ही  निर्भर रही। मगर आजाद भारत के इतिहास को नारियों की गौरव गाथा से रिक्त नहीं रहना था। 


इंदिरा गांधी 1966 में देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनीं। सुचेता कृपलानी यूपी की पहली महिला मुख्यमंत्री, किरण बेदी प्रथम महिला आईपीएस, कमलजीत संधू एशियन गेम्स में प्रथम गोल्ड पदकधारी, बेछेंद्री पाल एवरेस्ट पर प्रथम भारतीय महिला, मदर टेरेसा को नोबेल पुरस्कार, फातिमा बीबी प्रथम महिला जज सुप्रीम कोर्ट, मेधा पाटकर सामाजिक कार्यकर्ता जैसी अनेक महिलाओं ने पुरुषवादी समाज की सोच को पछाड़ते  हुए अपनी बुद्धिमत्ता, नेतृत्व क्षमता और सामर्थ्य का परिचय दिया और इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवा दिया।

आधुनिक नारी :- आज नारी में आधुनिक बनने की होड़ लगी है। नारी के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है, वह प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ रही है, स्वयं को बदल रही है और इस परिवर्तन को स्पष्ट रूप से देखा भी जा सकता  है। वह किसी भी प्रकार से पुरूषो से पीछे नहीं अपितु उनसे आगे हैं फिर चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या फिर व्यापार का। 

आज की नारी वह नारी नहीं है जो सिर्फ घर के चारदीवारी तक ही सीमित हो अपितु वह उच्च शिक्षित होकर  डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक व अंतरिक्ष यात्री  तथा राष्ट्रपति बनकर हर तरह के उच्चतम पदों पर भी आसीन हैं।

वे अपने वस्त्रों व जीवनशैली के साथ अपने जीवनसाथी का चुनाव करने के लिए भी स्वतंत्र हैं। परन्तु  कहीं ना कहीं ज्यादातर नारियाँ  स्वयं  की आधुनिक वेशभूषा और स्वयं के स्वच्छंद विचारो को ही नारी का आधुनिक होना मान रहीं हैं ।

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परन्तु स्वतंत्रता को अपनाना आधुनिकता नहीं है। नारी को शक्ति का प्रतीक  माना जाता रहा है। और उसने अदम्य साहस का परिचय भी दिया है। मां के रूप में एक कमजोर दिखने वाली नारी को जब भी लगता है कि उसके बच्चों पर कोई खतरा है तो उनकी रक्षा करने के लिए वह रणचंडी का रूप धारण करने में तनिक भी  देर नहीं लगाती है।

इसके अतिरिक्त नारी को धैर्य , त्याग और पृथ्वी की भी संज्ञा दी गयी है। झांसी की रानी लक्षमीबाई और पन्ना धाय जैसी नारियो ने इतिहास में नारी शक्ति और त्याग को सिद्ध किया है। वास्तव में दमन का विरोध और प्रगतिशील नवीन विचारो को अपनाना ही नारी का आधुनिक होना है। नारी में विद्यमान उसकी प्रतिभा और प्रगति समाज के लिए आवश्यक है। 

परन्तु आधुनिकता के नाम पर नारी को समाज को दूषित करने का कोई अधिकार नहीं है। क्योकि नारी का दर्जा माँ, बेटी, बहन ,पत्नी और साथ ही माँ दुर्गा, सरस्वती के रूप में  है। इसलिए उसको भी इनका सम्मान रखते हुए आगे बढ़ना है  ना की रिश्तो को तोड़कर परिवार को अलग करके आधुनिकता को अपनाना है वैसे भी नारी का दर्जा समाज को सम्मान दिलाने के लिए है समाज को परिवार की तरह जोड़कर रखने के लिए है, ना की तोड़ने के लिए। 

अतः हम ये कह सकते है की नारी मनुष्य जीवन की वो कलाकार है जो पुरुष मे बाल्यावस्था से ही संस्कारो के रूप मे रंग भरती आ रही है और जिसके माध्यम से वह एक सभ्य समाज के निर्माण मे अपना योगदान प्रदान करती है।

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