भारतीय संस्कृति मे अभिवादन के समय नमस्कार क्यों करते हैं?

नमस्कार क्यों करते हैं?


प्रायः हम सभी अपने दैनिक जीवन में नमस्कार की क्रिया करते हैं। बच्चे हो या बड़े यह हम सभी के दैनिक जीवन का एक अहम हिस्सा है। बच्चे और बड़े अपने बुजुर्गों को अभिवादन के रूप में तथा  बुजुर्ग अपने ईष्ट अथवा आराध्य को हाथ  जोड़कर प्रणाम के रूप में नमस्कार करते हैं। 

नमस्कार करने की यह परम्परा वर्तमान समय से ही नहीं अपितु सदियों से चली आ रही है। यही हमारे भारतीय सनातन संस्कृति की परम्परा है, जो संस्कारों के रूप में हमारी वर्तमान पीढ़ी में विद्यमान है।

 

नमस्कार करने की यह परम्परा हमारे संस्कारो में होने की वजह से ही हम अपने बड़ों अथवा बुजुर्गों का सम्मान करते है अथवा हाथ जोड़कर उन्हें नमस्कार करते हैं ,शास्त्रों में व्यक्ति के नमस्कार करने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण बतलाए गए हैं

नमस्कार करने के पीछे क्या कारण है तथा नमस्कार का क्या अर्थ होता है यह हम नहीं जानते हैं। तो आइये हम नमस्कार के अर्थ को समझते हैं और उसे अपने भीतर आत्मसात करते हैं। 

नमस्कार का क्या अर्थ है ?

किसी का आदरपूर्वक अभिवादन करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला शब्द जिसे बोलते समय हम अपने दोनों हाथों की हथेलियों व उँगलियों को आपस में मिलाते है जिससे हमारे दोनों हाथ जुड़कर हमारे सीने के सामने आ जाते हैं अब इसी अवस्था में आँखे बंद करके नमस्कार बोलते है तथा आँखे खोलकर हाथ नीचे कर शरीर को पुनः वापस सामान्य स्थिति में लेकर आते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को नमस्कार करना कहते है।


नमस्कार शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'नमस' शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है एक आत्मा का दूसरी आत्मा के प्रति आभार व्यक्त करना।

नमस्कार करने के पीछे क्या कारण होता है ?

नमस्कार को आदर, शांति और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। सभी मनुष्यो में ईश्वर का प्रेम दैवीय चेतना और प्रकाश के रूप में उसके 'अनहद' अर्थात 'ह्रदय चक्र' में विद्यमान है। ईश्वर के उसी प्रेम रूपी प्रकाश को हम नमस्कार के रूप में एक आत्मा से दूसरी आत्मा तक पहुँचाते हैं। 

नमस्कार करने के लिए जब हम अपने हाथों को अपने सीने के पास लाते हैं तो हमारे सीने में स्थित 'हृदय चक्र' में दैवीय प्रेम का संचार होता है। और सिर को झुकाने तथा ऑखे बंद करने का अर्थ है कि अपने आप को हृदय में स्थित विराजमान प्रभु को स्वंय को सौंप देना। 



नमस्कार का आध्यत्मिकता से क्या सम्बन्ध है ?

व्यक्ति को एक दूसरे को नमस्कार करने से उनके भीतर आध्यात्मिक और उसके अंतर निहित व्यावहारिक गुणों मे वृद्धि होती है व्यक्ति को नमस्कार करने से मनुष्य मस्तिष्क में प्रबल ‘अहम’ की भावना में कमी आती है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति के भीतर विनम्रता का भाव जागृत होता है। 

दोनों हाथ जोड़कर व्यक्ति अगर किसी के सामने स्वयं को झुकाता है तो इससे उसके भीतर कृतज्ञता का एहसास उत्पन्न होता है। इससे व्यक्ति के अंदर आध्यात्मिक विकास होता है और साथ ही साथ लोगों के प्रति उसके व्यवहार में शालीनता आती है।

नमस्कार करने की सही विधि क्या है ?

शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को नमस्कार करते समय बहुत सी बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिनमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं, आदि सम्मिलित हैं।  किसी को भी नमस्कार करते समय अपने दोनों नेत्रों को बंद रखना चाहिए। 

कभी भी मात्र सिर हिलाकर या एक हाथ से नमस्कार नहीं करना चाहिए। नमस्कार करते समय अपने दोनों हाथो को जोड़कर ही नमस्कार करना चाहिए। नमस्कार करते समय हमारे हाथो मे किसी भी प्रकार की कोई वस्तु नहीं होनी चाहिए 




नमस्कार का आत्मिक प्रभाव 

जब हम हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं तो उस वक़्त हथेलियों को जोड़ने से 'हृदय चक्र' में जो प्रेम का स्पंदन होता है वह हमारे अहंकार और प्रतिअहंकार का नाश करता है। जिसके कारण हमारा मन स्वतः ही शांत हो जाता है और हम स्वयं के भीतर  प्रेम  की एक सुखद अनुभूति का एहसास करते हैं। यदपि यह हृदय की गहरी भावना से मन को समर्पित करके किया जाए तो दो आत्माओं के मध्य एक आत्मीय संबंध बन जाता है। 

परन्तु समय के साथ भाव व प्रभाव में अंतर के चलते युवा पीढ़ी ने नमस्कार को नमस्ते शब्द में परिवर्तित कर दिया है। जहाँ एक ओर नमस्ते शब्द  साधारण अभिवादन को व्यक्त करता है वहीं नमस्कार शब्द एक सम्मानपूर्वक किए गए अभिवादन को अधिक स्पष्टता देता है।

यहाँ तक की हमने अपनी भारतीय संस्कृति की इस परंपरा को छोड़ पाश्चात्य संस्कृति में हाथ मिलाने की परंपरा को भी हम अपनाते जा रहे है, 

पाश्चात्य संस्कृति के लोग भारतीय संस्कृति की इस परंपरा को अपनाकर अपने भीतर एक सुखद अनुभूति का एहसास करते हैं। तो बेहतर है कि हम अपनी भारतीय सनातन संस्कृति की इस परंपरा को ही अपनाएं और अपनी पीढ़ियों तक भी इसी संस्कार को पहुंचाएं।

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