शंख का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व क्या है?

shankh kaa aadhyaatmik aur vaigyaanik mahatv
धर्मशास्त्रों मे शंख को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। शंख की उत्पत्ति समुद्र से मानी जाती है  हिन्दू धर्म मे शंख को पूजा पाठ तथा आनुष्ठानिक आदि कार्यो मे एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। शंख को सुख,समृद्धि ,कल्याण एवं धर्म का प्रतीक माना जाता है। 

हिन्दू धर्म मे शंख को अत्यंत पवित्र माना गया है। शंख विजय ,यश और कीर्ति का भी प्रतिनिधित्व करता है। वैदिक काल मे शंख मे जल भरकर राजाओ का जलाभिषेक कर उनका राज्याभिषेक किया जाता था। जिससे उनकी यश और कीर्ति चहुँ ओर व्याप्त रहती थी। 


अथर्ववेद के अनुसार शंख से राक्षसों का नाश होता है - शंखेन हत्वा रक्षांसि। देवी देवताओ ने भी युद्ध के समय दैत्यों मे भय उत्पन्न करने हेतु शंखनाद किया था जिसके कारण उनका मनोबल टूट जाता था और वह आसानी से मारे जाते थे। श्री कृष्ण के पाञ्चजन्य शंख की ध्वनि भी सिंह के गर्जना से भी कहीं अधिक भयंकर थी। 

शंख को कई नामो से सम्बोधित किया जाता है जैसे - समुद्रज, कंबु, सुनाद, पावनध्वनि, कंबु, कंबोज, अब्ज, त्रिरेख, जलज, अर्णोभव, महानाद, मुखर, दीर्घनाद, बहुनाद, हरिप्रिय, सुरचर, जलोद्भव, विष्णुप्रिय, धवल, स्त्रीविभूषण, पाञ्चजन्य, आदि।

शंख की उत्त्पति से सम्बंधित पौराणिक कहाँनियाँ क्या है?  

पुराणों मे शंख की उत्त्पति से सम्बंधित अलग अलग पौराणिक कहाँनियाँ उपलब्ध हैं। विष्णु पुराण के अनुसार शंख की उत्त्पत्ति समुद्र मंथन से हुयी थी। समुद्र मंथन के समय समुद्र से निकले 14 रत्नो मे से एक शंख की भी उत्त्पति हुयी थी इसीलिये शंख को लक्ष्मी जी का भाई भी मानते हैं क्योकि लक्ष्मी जी समुद्रराज की पुत्री हैं इसीलिये शंख को लक्ष्मी जी का भाई मानते हैं।

ऐसा माना जाता है की जहाँ शंख का निवास होता है वहीं लक्ष्मी जी का भी वास होता है। श्रीमदभागवत पुराण के अनुसार श्री कृष्ण जब सांदीपनि ऋषि के आश्रम से अपनी सम्पूर्ण विद्या ग्रहण कर वापस लौट रहे थे तो उन्होने ऋषि से तथा ऋषि माता से गुरु दक्षिणा मांगने का आग्रह किया।

गुरु दक्षिणा मांगने के फलस्वरूप ऋषि तथा ऋषि माता ने उनके समक्ष अपनी एक इच्छा वयक्त की। ऋषि ने उनसे कहा की हमारा एक पुत्र था जिसका नाम पुनर्दत्त था तथा जिसकी मृत्यु समुद्र मे डूबने से हो गयी थी। क्या तुम गुरु दक्षिणा के रूप मे हमारा मरा हुआ पुत्र वापस ला के दे सकते हो ? श्रीकृष्ण ने उन्हे गुरु दक्षिणा को पूर्ण करने का वचन दिया था इसलिए उन्होंने उनकी इस इच्छा को सहर्ष स्वीकार कर लिया।

जब श्रीकृष्ण समुद्र के पास पहुंचे तो समुद्रराज  ने बताया की समुद्र की गहराइयो मे पाञ्चजन्य नाम का एक दैत्य शंख के भीतर छुपकर रहता है उसी दैत्य ने उनके पुत्र को मारा है। तत्पश्चात श्रीकृष्ण ने उस दैत्य का वध कर उस पाञ्चजन्य शंख को धारण किया। यह वही शंख है जो सर्वशक्तिमान श्री हरी विष्णु के हाथो मे शोभयमान है।        
        
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शंख के कितने प्रकार के होते है?  

वैसे तो शंख कई प्रकार के होते है किन्तु मुख्य रूप से तीन प्रकार के शंख बताए जाते हैं।
 
1 . दक्षिणावर्ती शंख:- इस शंख को दक्षिणावर्ती शंख इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस शंख का पेट दायी तरफ खुलता है इस शंख को देव स्वरुप माना गया है तथा इस शंख के पूजन से घर मे सुख समृद्धि आती है तथा इसकी उपस्तिथि मात्र से समस्त रोगो का नाश हो जाता है। 

इस शंख को घर मे रखने से मनुष्य को लक्ष्मी प्राप्ति के साथ साथ संपत्ति की भी प्राप्ति होती है। तथा व्यक्ति के समस्त कार्य सरलता पूर्वक सिद्ध हो जाते हैं। इस शंख मे रात्रि मे जल भरकर सुबह खाली पेट इसका जल पीने से पेट सम्बंधित सभी समस्याए शीघ्र ही दूर हो जाती है।

       
2 . मध्यवर्ती शंख :-  मध्यवर्ती शंख को एक और नाम गणेश शंख के नाम से भी जाना जाता है। इस शंख को मध्यवर्ती शंख इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस शंख का पेट मध्य मे खुलता है। इस शंख को गणेश शंख इसलिए भी कहा जाता है क्योकी इसकी आकृति गणेश जी जैसी होती है। यह शंख दरिद्रतानाशक और धन प्राप्ति का कारक है।  

3 . वामावर्ती शंख :- इस शंख को वामावर्ती शंख इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस शंख का पेट बायी तरफ खुलता है। इसके शंखनाद के लिए इसमें एक छिद्र होता है। यह शंख सरलता से उपलब्ध हो जाता है। 

दैनिक पूजा पाठ तथा आनुष्ठानिक कार्यो के प्रारंभ तथा अंत मे इसी शंख से शंखनाद किया जाता है। इसके शंखनाद से घर की समस्त नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसकी ध्वनि से वातावरण के सभी कीटाणु नष्ट हो जाते हैं तथा वातावरण स्वच्छ हो जाता है।

इन तीन प्रकार के शंखो के अलावा और भी कई तरह के शंख होते है जिनका अलग-अलग कार्य तथा प्रभाव होता है प्रत्येक शंख का गुण अलग अलग माना गया है। कोई शंख विजय दिलाता है, तो कोई धन और समृद्धि। किसी शंख में सुख और शांति देने की शक्ति है तो किसी में यश और कीर्ति। 


ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है। इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है। उन शंखो के नाम इस प्रकार हैं।

महालक्ष्मी शंख, गोमुखी शंख, कामधेनु शंख, विष्णु शंख, देव शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, गरूड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख, पांचजन्य शंख, अन्नपूर्णा शंख, मोती शंख, हीरा शंख, शेर शंख आदि प्रकार के होते हैं।

शंख नाद क्यों किया जाता है?  

शंख को बजाने का चलन युगो युगो से है। ऋषि मुनि तथा राजा महाराजा भी यज्ञ आदि तथा पूजा पाठ के कार्यो के समय पवित्र शंखनाद करते थे। शंखनाद से उत्पन्न ध्वनि को अति शुभ माना गया है। इसकी ध्वनि को ॐ की ध्वनि के समकक्ष माना गया है। शंखनाद से हमारे आसपास के नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 


शंख की ध्वनि से वातावरण के सभी कीटाणु नष्ट हो जाते है तथा वातावरण स्वच्छ हो जाता है। शंख की पावन ध्वनि को सुनकर मनुष्य के भीतर की समस्त नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है तथा उसके भीतर आध्यात्मिक शक्ति का संचार होता है। शंख से उत्पन्न ध्वनि सिर्फ हमारे भीतर आध्यात्मिक शक्ति का संचार ही नहीं करती अपितु इसकी पवित्र ध्वनि से हमारे शरीर के समस्त अंगो पर भी अपना प्रभाव डालती है। 

शंख की पावन ध्वनि सुनने अथवा बजाने के कारण हम शारीरिक रूप से स्वयं को स्वस्थ महसूस करते हैं। शंख बजाने से चेहरे, श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र तथा फेफड़ों का व्यायाम होता है। शंखनाद करने से जो सकारात्मक प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है उसकी प्रमाणिकता को वैज्ञानिक भी सिद्ध करते हैं।  
     
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शंख का वैज्ञानिक महत्व क्या है?  

विज्ञान के अनुसार शंख मुख्य रूप से समुद्र मे स्तिथ एक समुद्री जीव का ढांचा होता है जिसे वह अपनी रक्षा के लिए बनाता है। वैज्ञानिको ने अपने शोध से इस बात को सिद्ध किया है की शंखनाद करने पर शंख से उत्पन्न ध्वनि वातावरण मे जहाँ तक भी सुनायी देती है वहाँ तक वातावरण के कीटाणु को नष्ट कर उसे स्वच्छ बनाती है।

शंख को बजाने से हमारे फेफड़े स्वस्थ रहते हैं। पुराणों मे यह कहा गया है की यदि श्वास की बीमारी से ग्रसित व्यक्ति नियमित रूप से शंख बजाता है तो वह बीमारी से मुक्त हो सकता है। शंख में रखे पानी का सेवन करने से हड्डियां मजबूत होती हैं यह दांतों के लिए भी लाभदायक है। 


शंख में कैल्श‍ियम, फास्फोरस व गंधक के गुण होने की वजह से यह फायदेमंद है। यदि किसी को किसी भी प्रकार का वाणी दोष है तो शंख बजाने से लाभ मिलता है। शंख बजाने से कई तरह के फेफेड़े के रोग जैसे दमा, संक्रमण, क्षय, दिल की बीमारी, पेट की बीमारी और आस्थमा आदि रोगों से निजात मिलती है। 

शंख बजाने से पूरे शरीर में वायु का प्रवाह अच्छे तरीके से होता है, जिससे हमारा शरीर निरोगी हो जाता है। आयुर्वेद के मुताबिक, शंखोदक के भस्म के उपयोग से पेट की बीमारियां, पथरी, पीलिया आदि कई तरह की बीमारियां दूर होती हैं।

शंख का वास्तु से क्या सम्बन्ध है?  

वास्तुशास्त्र के मुताबिक भी शंख में ऐसे कई गुण होते हैं जिसकी वजह से शंख को घर मे स्थापित करने से घर के सभी वास्तु दोषो का निवारण होता है। वास्तु के अनुसार शंखो मे चामत्कारिक गुण भी विद्यमान होते हैं जो घर के वास्तु दोषो को दूर करने मे सहायता प्रदान करते हैं। गृह प्रवेश करते समय नए घर मे यज्ञ अथवा हवन के पश्चात शंखनाद करने से उस घर की सभी नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है। 


शंख में गाय का दूध रखकर इसका छिड़काव घर में किया जाए तो इससे भी सकारात्मक उर्जा का संचार होता है। शंख से मात्र वास्तुदोष ही दूर नहीं होता अपितु इससे आरोग्य वृद्धि, आयुष्य प्राप्ति, लक्ष्मी प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति, पितृ-दोष शांति, विवाह आदि की रुकावट भी दूर होती है। यहाँ कुछ शंखो के नाम इस प्रकार है जिनसे वास्तु दोषो को दूर करने मे मदद मिल सकती है।

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श्रीगणेश शंख :- श्रीगणेश शंख का पूजन जीवन के सभी क्षेत्रों की उन्नति और विघ्न बाधा की शांति हेतु किया जाता है। इसकी पूजा से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। आर्थिक, व्यापारिक, कर्ज और पारिवारिक समस्याओं से मुक्ति पाने का श्रेष्ठ उपाय श्री गणेश शंख है।

कामधेनु शंख :-  कामधेनु शंख को गौमुखी शंख भी कहा जाता है। कामधेनु शंख का उपयोग तर्क शक्ति को और प्रबल करने के लिए किया जाता है। इस शंख की पूजा-अर्चना करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

मोती शंख :- इस शंख का उपयोग घर में सुख और शांति के लिए किया जाता है। मोती शंख हृदय रोग नाशक भी है। 
विष्णु शंख :- इस शंख का उपयोग लगातार प्रगति के लिए और असाध्य रोगों में शिथिलता के लिए किया जाता है। इसे घर में रखने भर से घर रोगमुक्त हो जाता है।


पौण्ड्र शंख :- पौण्ड्र शंख का उपयोग मनोबल बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग विद्यार्थियों के लिए उत्तम है। इसे विद्यार्थियों को अध्ययन कक्ष में पूर्व की ओर रखना चाहिए।

मणि पुष्पक शंख :- मणि पुष्पक शंख की पूजा-अर्चना से यश कीर्ति, मान-सम्मान प्राप्त होता है। उच्च पद की प्राप्ति के लिए भी इसका पूजन उत्तम है।

देवदत्त शंख :- इसका उपयोग दुर्भाग्य नाशक माना गया है। इस शंख का उपयोग न्याय क्षेत्र में विजय दिलवाता है। इस शंख को शक्ति का प्रतीक माना गया है। न्यायिक क्षेत्र से जुड़े लोग इसकी पूजा कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

महालक्ष्मी शंख :-  इस शंख को श्री यंत्र भी कहा जाता है इसकी आवाज बहुत मधुर होती है। इस शंख की जिस भी घर मे पूजा पाठ होता है वहां देवी लक्ष्मी स्वयं निवास करती हैं। 

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महाभारतकालीन  शंख :- महाभारत काल मे भी शंखो का अत्यंत महत्व था। अद्भुत शौर्य और शक्ति का संबल शंखनाद से होने के कारण ही योद्धाओं द्वारा इसका प्रयोग किया जाता था। युद्ध मे शंखनाद के प्रयोग से शत्रु सेना का मनोबल टूट जाता था तथा स्वयं की सेना मे विजय श्री को प्राप्त करने का उत्साह बना रहता था। 


उस समय युद्ध के प्रारंभ मे शंखनाद से युद्धघोष करके युद्ध का आरम्भ किया जाता था तथा युद्ध समाप्ति के समय एक बार फिर से शंखनाद करके विजयश्री की घोषणा की जाती थी। महाभारत काल मे सभी योद्धाओ के पास शंख थे जिनका अपना महत्व था। उन सभी शंखो के नाम इस प्रकार हैं :-

 महाभारत कालीन योद्धाओं के नाम   शंखो के नाम 
 1. कृष्ण पाञ्चजन्य
 2. अर्जुन देवदत्त 
 3. भीम पौंड्र
 4. युधिष्ठिर अनंतविजय 
 5. नकुल    सुघोषमणि
 6. सहदेव    मणिपुष्पक
 7. भीष्म गंगनाभ
 8. कर्ण  हिरण्यगर्भ 
 9.धर्ष्टद्युमन   यज्ञघोष
 10.दुर्योधन   विदारक

शंख से सम्बंधित कुछ रहस्यमयी जानकारियाँ 

  • विश्व का सबसे बड़ा शंख केरल राज्य के गुरुवयूर के श्रीकृष्ण मंदिर में सुशोभित है, जिसकी लंबाई लगभग आधा मीटर है तथा वजन दो किलोग्राम है। 
  • शंख के अंदर थोड़ा चूने का पानी भरकर पीने से मनुष्य के भीतर कैल्शियम की मात्रा की कमी नहीं होती है।
  • शंख बजाने से वाणी दोष समाप्त हो जाता है।
  • शंख मे जल भरकर रखने से फिर उसी जल का छिड़काव करने से घर का वातावरण शुद्ध होता है। 

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