'स्वास्तिक' एक पवित्र प्रतीक क्यों है? Why 'Swastik' is a sacred symbol?




स्वास्तिक हिंदू धर्म का एक पवित्र  शब्द और एक प्राचीन प्रतीक है। यह शुभता और कल्याण का  प्रतीक है। इसका उपयोग हमेशा किसी स्थान को शुद्ध और पवित्र करने या सौभाग्य, शांति और समृद्धि को आकर्षित करने के लिए किया जाता है। 

स्वास्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। 'सु' का अर्थ अच्छा, 'अस' का अर्थ 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ 'कर्त्ता' या करने वाले से है। इस प्रकार 'स्वास्तिक' शब्द का अर्थ हुआ 'अच्छा' या 'मंगल' करने वाला। 

स्वास्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे चलकर अपने दायी तरफ मुड़ी होती हैं। यही स्वास्तिक का शुभ चिन्ह है जो हमारी प्रगति और सृस्टि की गतिशीलता का प्रतीक है। 


हिंदू धर्म में दक्षिणावर्त clockwise (卐) को दर्शाने वाले आकृति को स्वास्तिक कहा जाता है जो सूर्य, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक है, जबकि वामावर्त प्रतीक anticlockwise (卍) को सावास्तिका कहा जाता है, जो काली के रात्रि या तांत्रिक पहलुओं का प्रतीक है। यह एक ज्यामितीय आकृति  geometrical figure और एक प्राचीन धार्मिक चिन्ह है।


हिन्दू धर्म मे इस स्वास्तिक के चिन्ह को अत्यंत ही शुभ और पवित्रता तथा सूर्य का प्रतीक माना जाता है इसका उपयोग हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में दिव्यता और आध्यात्मिकता के प्रतीक के रूप में किया जाता है। 

कई प्रमुख इंडो-यूरोपियन धर्मों में, स्वास्तिक बिजली के तारों का प्रतीक है, जो गरुड़ देवता और देवताओं के राजा का प्रतिनिधित्व करता है। भारतीय उपमहाद्वीप में 500 ईसा पूर्व से स्वास्तिक शब्द का उपयोग किया जाता है। 

स्वास्तिक शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

स्वास्तिक शब्द की उत्पत्ति संस्कृत  भाषा से हुई है। स्वस्ति शब्द का अर्थ वेदों के साथ-साथ शास्त्रीय साहित्य में भी होता है, जिसका अर्थ है 'स्वास्थ्य, भाग्य, सफलता, समृद्धि' और आमतौर पर अभिवादन के रूप में इसका उपयोग किया जाता है।अधिकांश विद्वान इसे एक सौर प्रतीक मानते हैं। 


स्वास्तिक का यह मांगलिक चिह्न अनादि काल से सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वास्तिक को मंगल- प्रतीक माना जाता रहा है। 

विघ्नहर्ता गणेश की उपासना धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ भी शुभ लाभ, स्वास्तिक तथा बहीखाते की पूजा की परम्परा है। इसे भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। इसीलिए  कोई भी मंगल व शुभ कार्य करते समय सर्वप्रथम स्वास्तिक को ही अंकित किया जाता है।

स्वास्तिक का सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव क्या है?

इसका सकारात्मक और नकारात्मक अर्थ हो सकता है कि यह कैसे बनाया जाता है। इसलिए हिंदू धर्म में, दाहिने हाथ की स्वास्तिक भगवान विष्णु और सूर्य का प्रतीक है, जबकि बाएं हाथ का स्वास्तिक काली और जादू का प्रतीक है। 

स्वास्तिक की चार भुजाएँ  मुख्य रूप से इन सभी को दर्शाती  हैं   चार देव :- ब्रम्हा ,विष्णु ,महेश तथा श्री गणेश। चारो दिशाएँ : - पूरब ,पच्छिम ,उत्तर ,दक्षिण तथा  चार वेदो को :- ऋगवेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद 

मानव जीवन के चार उद्देश्य :- इन्हे संस्कृत में पुरुषार्थ कहते हैं धर्म (धार्मिकता), अर्थ (धन); काम (इच्छा); और अंत में मोक्ष (मुक्ति)। और मानव जीवन के चार चरण:- मानव जीवन के इन्ही चार चरणों को आश्रम कहा जाता है - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास।

 


स्वास्तिक का विभिन्न धर्मो द्धारा उपयोग कैसे किया जाता है? 

हिन्दू धर्म का पवित्र प्रतीक चिन्ह स्वास्तिक जिसका उपयोग मात्र भारत मे ही नहीं अपितु समग्र विश्व मे कल्याण हेतु किया जाता है। इस पवित्र प्रतीक स्वास्तिक की महत्ता मात्र हिन्दू धर्म मे ही नहीं अपितु विभन्न धर्मो मे भी है। इन सभी धर्मो ने स्वास्तिक का उपयोग समय समय पर अपने धर्मानुसार अपने धर्म मे अपने कल्याण हेतु किया है। 

स्वास्तिक और जैन धर्म :- जैन धर्म में यह स्वास्तिक 24 तीर्थंकरों (आध्यात्मिक गुरु और उद्धारकर्ता) का प्रतीक है,जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकर और उनके चिह्न में स्वास्तिक को शामिल किया गया है। तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का शुभ चिह्न है स्वास्तिक जिसे सातिया भी कहा जाता है। 

जैन धर्म मे स्वास्तिक की चार भुजाएं चार गतियों- नरक, त्रियंच, मनुष्य एवं देव गति की द्योतक हैं। जैन लेखों से संबंधित प्राचीन गुफाओं और मंदिरों की दीवारों पर भी यह स्वास्तिक प्रतीक अंकित मिलता है।


स्वास्तिक और बौद्ध धर्म :- बौद्ध धर्म में यह स्वास्तिक  बुद्ध के शुभ पदचिह्नों का प्रतीक है। बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को अच्छे भाग्य का प्रतीक माना गया है। यह भगवान बुद्ध के पग चिन्हों को दिखाता है, इसलिए इसे इतना पवित्र माना जाता है। यही नहीं, स्वास्तिक भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में भी अंकित है।


स्वास्तिक की प्रभुत्ता को मात्र भारतीय संस्कृति ने ही नहीं अपितु  पाश्चात्य संस्कृति  ने भी अपनाया है। जिनमे जर्मनी, यूनान, फ्रांस, रोम, मिस्र, ब्रिटेन, अमेरिका, स्कैण्डिनेविया, सिसली, स्पेन, सीरिया, तिब्बत, चीन, साइप्रस और जापान आदि  विभिन्न देशों में स्वास्तिक का प्रचलन किसी न किसी रूप में मिलता है।

स्वास्तिक और हड़प्पा सभ्यता :- सिंधु घाटी की खुदाई के दौरान  भी स्वास्तिक प्रतीक चिन्ह मिला। ऐसा माना जाता है की हड़प्पा सभ्यता के लोग भी सूर्य पूजा को महत्व देते थे। हड़प्पा सभ्यता के लोगों का व्यापारिक संबंध ईरान से भी था।

स्वास्तिक का अमेरिका द्धारा उपयोग :- स्वास्तिक का इस्तेमाल अमेरिका वासियो ने भी किया गया था। अमरीकी सेना ने पहले विश्व युद्ध में इस प्रतीक चिह्न का इस्तेमाल किया था। ब्रितानी वायु सेना के लड़ाकू विमानों पर इस चिह्न का इस्तेमाल 1939 तक होता रहा था।

स्वास्तिक का जर्मनी और नाजीवाद द्धारा उपयोग :- स्वास्तिक का इस्तेमाल जर्मनी मे भी काफी प्रचलित था। 1935 के दौरान जर्मनी के नाज़ियों द्वारा स्वास्तिक के निशान का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन यह हिन्दू मान्यताओं के बिलकुल विपरीत था। यह निशान एक सफेद गोले में काले ‘क्रास’ के रूप में उपयोग में लाया गया, जिसका अर्थ उग्रवाद या फिर स्वतंत्रता से सम्बन्धित था। 


इस प्रतीक ने एक नया अर्थ तब लिया, जब इसे हिटलर द्वारा उपयोग मे  लिया गया और जर्मनी में यहूदी विरोधी राष्ट्रवादी समूहों द्वारा प्रचारित किया गया। स्वास्तिक जल्दी ही  पूरे यूरोप में फासीवाद का चेहरा बन गया और 20 वीं शताब्दी के सबसे ज्यादा नफरत के प्रतीकों में से एक में बदल गया। 

19वीं सदी के बाद 20वीं सदी के अंत तक इसे नफ़रत की नज़र से देखा जाने लगा। नाज़ियों द्वारा कराए गए यहूदियों के नरसंहार के बाद इस चिन्ह को भय और दमन का प्रतीक माना गया था।



स्वास्तिक इस बात का एक प्रमुख उदाहरण है कि कैसे एक चीज का विभिन्न संस्कृतियों में पूरी तरह से अलग अलग अर्थ हो सकता है। स्वास्तिक की प्रभुत्ता भारत मे ही नहीं अपितु समग्र विश्व मे स्थापित है फिर चाहे वह सकारात्मक रूप मे हो या फिर नकारात्मक रूप मे।


स्वास्तिक को भारत मे एक विशेष सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। और इसका मांगलिक कार्यो मे उपयोग किया जाता है। 

स्वास्तिक का लाल रंग से क्या सम्बन्ध है?

हम सभी स्वास्तिक को अधिकतर रोली या कुमकुम से बनाते हैं जिसका रंग लाल होता है। क्या हम जानते हैं की इसे बनाने के लिए अधिकतर लाल रंग का ही उपयोग क्यों करते हैं किसी दूसरे रंग का उपयोग क्यों नहीं ? 

तो फिर आइये जानते हैं इस लाल रंग के रहस्य को। भारतीय संस्कृति मे लाल रंग का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका अधिकतर उपयोग मांगलिक कार्यो मे रोली, कुमकुम और सिंदूर के रूप मे किया जाता है। लाल रंग शौर्य एवं विजय का प्रतीक है। यह लाल रंग प्रेम, रोमांच व साहस को भी प्रदर्शित करता है। 

धार्मिक महत्व के अलावा वैज्ञानिक दृष्टि से भी लाल रंग को सही माना जाता है। लाल रंग व्यक्ति के शारीरिक व मानसिक स्तर को अत्यंत शीघ्र प्रभावित करता है। यह रंग शक्तिशाली व मौलिक है। 

हमारे सौर मण्डल में मौजूद ग्रहों में से एक ग्रह मंगल ग्रह का रंग भी लाल है।मंगल ग्रह एक ऐसा ग्रह है जिसे साहस, पराक्रम, बल व शक्ति के लिए जाना जाता है। स्वास्तिक को श्री गणेश का ही स्वरुप माना जाता है। यह कुछ कारण हैं जो स्वास्तिक बनाते समय केवल लाल रंग के उपयोग की ही सलाह देते हैं।

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