जगन्नाथ मंदिर की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई मानी जाती है जो पुरी मे प्रभु जगन्नाथ जी के धाम मे स्थित है। यह रसोई विश्व की सबसे बड़ी और सबसे अद्भुत रसोई है।
जगन्नाथ धाम, पुरी की यह रसोई अत्यंत अद्भुत है। यह रसोई मंदिर की दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित 172 साल पुराने इस मंदिर के एक एकड़ में फैली है। 32 कमरों वाली इस विशाल रसोई (150 फ़ीट लंबी, 100 फ़ीट चौड़ी और 20 फ़ीट ऊँची) में भगवान् को अर्पित किये जाने वाले महाप्रसाद का निर्माण किया जाता है
जगन्नाथ मंदिर की रसोई Jagannath Temple Kitchen
जगन्नाथ मंदिर की इस रसोई में महाप्रसाद को सम्पूर्ण रूप से तैयार करने के लिए 752 चूल्हे इस्तेमाल किया जाता हैं और लगभग 500 रसोइए तथा उनके 300 सहयोगी सदैव कार्यरत रहते हैं। जगन्नाथ मंदिर की रसोई मे पकाया जाने वाला सम्पूर्ण प्रसाद मिट्टी की जिन सात सौ हांडियों में पकाया जाता है, उन्हें ‘अटका’ के नाम से जाना जाता हैं।
रसोई मे लगभग दो सौ सेवक सब्जियों, फलों, नारियल इत्यादि को काटते हैं, तथा मसालों को पीसते हैं। ऐसी मान्यता है कि जगन्नाथ मंदिर की इस रसोई में जो भी भोग का निर्माण किया जाता है, वह माता लक्ष्मी की संरछण में तैयार किया जाता है।
जगन्नाथ मंदिर की रसोई मे तैयार किया गया सम्पूर्ण भोग पूर्णतया सात्विक होता है। मीठे व्यंजन तैयार करने के लिए यहाँ चीनी के स्थान पर गुड़ प्रयोग में लाया जाता है। भोग के निर्माण मे किसी भी प्रकार से आलू, टमाटर और फूलगोभी का उपयोग मन्दिर में नहीं किया जाता है ।
जगन्नाथ मंदिर की रसोई मे जिस भी भोजन को यहाँ पर बनाया जाता हैं, उनके ‘जगन्नाथ वल्लभ लाडू’, ‘माथपुली’ जैसे कई नामो से पुकारा जाता हैं। भगवान के भोग में प्याज और लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता है।
भगवान जगन्नाथ की रसोई में प्रयोग होने वाला जल
जगन्नाथ मंदिर की रसोई मे भोग का निर्माण करने के लिए जो जल प्रयोग मे लाया जाता है ,वह मंदिर के समीप स्थित गंगा और यमुना नाम के दो कुओ से लिया जाता है। केवल इनसे निकले पानी से ही भोग का निर्माण किया जाता है।
जगन्नाथ मंदिर की इस रसोई में 56 विभिन्न प्रकार के भोगों का निर्माण किया जाता है। दाल, चावल, सब्जी, मीठी पूरी, खाजा, लड्डू, पेड़े, बूंदी, चिवड़ा, नारियल, घी, माखन, मिसरी आदि से महाप्रसाद बनता है।
जगन्नाथ मंदिर की रसोई में सम्पूर्ण वर्ष के लिए भोजन पकाने की सामग्री पर्याप्त मात्रा मे उपलब्ध रहती है। इस रसोई मे प्रतिदिन विभिन्न प्रकार की मिठाइयाँ बनाई जाती हैं।
एक साथ आठ लाख़ लड्डू बनाने के लिए जगन्नाथ मंदिर की रसोई का नाम गिनीज़ बुक में भी दर्ज हो चुका है। जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रतिदिन एक बार में 50 हज़ार लोगों के लिए महाप्रसाद का निर्माण किया जाता है। मन्दिर की रसोई में प्रतिदिन बहत्तर क्विंटल चावल पकाने की व्यवस्था है।
जगन्नाथ मंदिर की रसोई में एक के ऊपर एक रखे हुए मिट्टी के 7 हांडियों में चावल पकाया जाता है। प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रख दिए जाते हैं। सबसे ऊपर रखे बर्तन में रखा हुआ भोजन सबसे पहले पकता है फिर नीचे की तरफ़ से एक के बाद एक बर्तन का प्रसाद पकता जाता है। अंत मे सबसे नीचे रखा हुआ बर्तन का प्रसाद पकता है। प्रतिदिन नये बर्तन ही भोग बनाने के काम आते हैं।
भगवान जगन्नाथ का प्रसाद
भगवान जगन्नाथ को सर्वप्रथम भोग अर्पित करने के पश्चात् ही भक्तों को प्रसाद दिया जाता है। भगवान् जगन्नाथ को अर्पित किया जाने वाला महाप्रसाद जिसे ‘अब्धा’ कहा जाता है।
यह प्रसाद प्रभु जगन्नाथ जी को निवेदित करने के पश्चात माता बिमला को निवेदित किया जाता है तब वह प्रसाद महाप्रसाद बन जाता है। भगवान् श्री जगन्नाथ को दिन में छह बार महाप्रसाद चढ़ाया जाता है।
जिस दिन जगन्नाथ जी की रथ यात्रा होती है उस दिन एक लाख़ चौदह हज़ार लोग रसोई कार्यक्रम में तथा अन्य व्यवस्था में लगे होते हैं। जबकि 6000 पुजारी पूजाविधि में कार्यरत होते हैं।
ओडिशा में दस दिनों तक चलने वाले इस राष्ट्रीय उत्सव में भाग लेने के लिए दुनिया के कोने-कोने से लोग उत्साहपूर्वक उमड़ पड़ते हैं। यहाँ भिन्न-भिन्न जातियों के लोग एकसाथ भोजन करते हैं, जात-पाँत का कोई भेदभाव नहीं रखा जाता।
जगन्नाथ मंदिर की इस रसोई मे तैयार किया गया प्रसाद भक्तो मे बराबर वितरण किया जाता है। शाम होते ही मंदिर के कपाट बंद होने के साथ ही महाप्रसाद भी समाप्त हो जाता है। इस रसोई मे तैयार किया गया प्रसाद ना तो कभी ज्यादा होता है और ना ही कभी कम पड़ता है।
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