एक बार की बात है एक संत ठाकुर जी के बहुत बड़े भक्त थे। वह प्रेम भरे ह्रदय से पूरे दिन रात ठाकुर जी की सेवा मे लगे रहते थे। प्रातः काल उन्हें बड़े प्रेम से उठाना स्नान आदि करवाकर वह उन्हे अत्यंत प्रेम के साथ अपने हाथो से भोग लगाते और उसके बाद वह उनके भजन कीर्तन मे लीन हो जाते और रात्रि मे भक्ति और प्रेम से परिपूर्ण हो वह उनको सुलाकर ही स्वयं सोते। यह कार्य उनकी दिनचर्या बन गया था। ऐसा प्रतिदिन करते करते उनका समय कब व्यतीत हो जाता था उन्हें स्वयं भी इस बात का ज्ञात नही।
उन्होंने बिहारी जी की सेवा मे ही स्वयं को लीन कर लिया था। इसके अलावा उन्हें और कुछ ज्ञात नहीं था। वह जहाँ भी जाते वही ठाकुर जी को अपने संग ले जाते। हर क्षण उन्हें सिर्फ ठाकुर जी का ही ध्यान रहता वह सिर्फ उनकी ही बात किया करते।
और ठाकुर जी भी उन संत की सेवा भाव से अति प्रसन्न रहते थे। वो कहते है न की भगवान को सिर्फ भक्त का प्रेम भरा हृदय चाहिए और कुछ भी नहीं। यह बात इस कहानी से सिद्ध हो जाती है की भगवान को सिर्फ प्रेम और भक्ति की शक्ति से ही वश मे किया जा सकता है।
एक बार वह संत कुछ अन्य संतो के साथ ट्रेन की यात्रा कर रहे थे। वह संत अपने साथ ठाकुर जी को भी अपनी यात्रा मे साथ ले आए और अपनी साथ वाली सीट पर उन्हें विराजमान कर उनको प्रणाम किया। अब उन संत ने अन्य संतो के साथ मिलकर प्रभु की भक्ति मे ओत प्रोत होकर प्रभु भजन और कीर्तन आरम्भ कर दिया।
प्रभु भजन और कीर्तन की समाप्ति के पश्चात वह सभी संत प्रभु भक्ति की चर्चा मे लीन हो गए और कब उनकी मंजिल आ गयी उन्हें पता भी नहीं चला। सभी संत एक साथ ट्रेन से नीचे उतरकर स्टेशन से बाहर आ गए और आश्रम पहुँच गए।
आश्रम मे पहुँच कर जब उन संत का भोजन का समय हुआ तो उन संत ने सोचा की ठाकुर जी के भी भोग का समय हो चुका है बिना ठाकुर जी को भोग लगाए मैं भोजन कैसे ग्रहण कर सकता हूँ और वह ठाकुर जी को भोग लगाने के लिए भोग की तैयारी करने लगे।
किन्तु यह क्या जब वह संत भोग लगाने के लिए ठाकुर जी को अपने बक्से मे से निकालने लगे तो ठाकुर जी तो वहाँ पर विराजमान ही नहीं थे। यह दृश्य देखकर संत को बहुत आघात लगा। वह अपने चारो तरफ ठाकुर जी को ढूढ़ने लगे किन्तु ठाकुर जी नहीं मिले। वह संत निराश हो गए।
अब उन्होंने अपनी व्यथा अन्य संतो से कही तो सभी संत मिलकर पूरे आश्रम मे ठाकुर जी को ढूढने लगे किन्तु ठाकुर जी कहीं नहीं मिले। अब वह संत और ज्यादा निराश होने लगे वह सोचने लगे की बिना ठाकुर जी के मैं क्या करूँगा। यह बात सोचते सोचते उनके नेत्रों से अश्रु की धारा बहने लगी।
यह देख अन्य संत उन सज्जन संत को समझाने लगे की कोई बात नहीं यदि आपके ठाकुर जी नहीं मिल रहे है तो हम आपको दूसरे ठाकुर जी ला देंगे किन्तु आप अपना मन हल्का मत करिये। किन्तु वह संत नहीं माने वह लगातार रोये जा रहे थे और यही कह रहे थे की मुझे तो अपने वही ठाकुर जी चाहिए जिनसे मैं रोज लाड़ लड़ाता था उनके अलावा अन्य कोई नहीं चाहिए।
उन्होंने अन्न और जल भी ग्रहण नहीं किया। ऐसा करते करते 4 -5 घंटे बीत गए इधर ठाकुर जी कहीँ मिल नहीं रहे थे और उधर संत जी की तबियत रो रो कर ख़राब होती जा रही थी।
फिर अचानक एकाएक उन्हें याद आया की आख़िरी बार उन्होंने ठाकुर जी को ट्रेन मे बिठाया था और प्रभु भक्ति की चर्चा मे लीन हो वो कब बगैर ठाकुर जी को लिए ट्रेन से उतर आश्रम पहुँच गए उन्हें पता ही नहीं चला। यह बात सुनते ही समस्त संतो ने उस सज्जन संत से कहा की अब तो 4 -5 घंटे बीत गए वह ट्रेन बहुत दूर चली गयी होगी।
यह बात सुनकर सज्जन संत ने अन्य सभी संतो से कहा की मुझसे गलती हो गई की मैं बगैर अपने ठाकुर जी को लिए ट्रेन से उतर आश्रम पहुँच आया किन्तु मेरे ठाकुर जी मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाएगें। मुझे पूर्ण विश्वास है की ठाकुर जी मेरी वहीं प्रतीक्षा कर रहे होंगे।
एक भक्त का अपने प्रभु के प्रति ऐसा आत्म विश्वास देखकर वहाँ उपस्थित सभी संत उन सज्जन संत को साथ लेकर स्टेशन की ओर चल दिए। स्टेशन पहुँचकर संतो ने स्टेशन मास्टर को अपनी सारी कहानी सुनाई।
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यह बात सुनकर स्टेशन मास्टर ने संतो से कहा की एक ट्रेन पिछले 4 -5 घंटे से स्टेशन पर ही खड़ी है। हम सभी बहुत परेशान हैं की बिना किसी तकनीकी समस्या के वह ट्रेन आगे क्यों नहीं बढ़ रही है।
स्टेशन मास्टर की इन बातो को सुनकर संतो को समझने मे तनिक भी देर ना लगी कि यह सब तो उस लीलाधर की एक लीला थी। और वह मुस्कराते हुए अपने ठाकुर जी को लेने चल दिये।
ट्रेन की बोगी मे पहुँच कर जब उन संत ने ठाकुर जी को देखा तो ऐसा लगा मानो जैसे वह एक बच्चे की भांति बैठकर अपने पिता का इंतजार कर रहा हो की कब उसके पिता आएंगे और उसे ले जाएगें। तब उन संत ने ठाकुर जी को प्रणाम कर और क्षमायाचना करते हुए ठाकुर जी को लेकर ट्रेन से नीचे उतर गए।
अंत मे यह दृश्य देखकर सभी अचंभित रह गए जब वह संत अपने ठाकुर जी को लेकर जैसे ही ट्रेन से नीचे उतरे वैसे ही वह ट्रेन भी चल दी जो बिना किसी तकनीकी समस्या के स्टेशन पर पिछले 4 -5 घंटे से खड़ी थी। वहाँ खड़े सभी सज्जन पुरुषो ने भक्ति की शक्ति का यह दृश्य देखकर सभी ने ठाकुर जी के चरणों मे शत शत प्रणाम किया और आश्रम की ओर चल दिए।
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