डाटकाली मन्दिर देहरादून का इतिहास क्या है | daatkali mandir dehradun history

डाटकाली मन्दिर देहरादून का इतिहास क्या है daatkali mandir dehradun

भारतवर्ष मे अनेको हिन्दू मन्दिर स्थापित है। उनमें से कई मन्दिर शक्तिपीठ तो कई मन्दिर सिद्धपीठ मन्दिर हैं। इन सभी मन्दिरो की मान्यता बहुत अधिक है जहाँ भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

ऐसा ही एक मनोकामना सिद्धपीठ मन्दिर माँ श्री डाटकाली मन्दिर है जहाँ भक्त माता के दर्शन कर माता के आशीर्वाद से अपनी मनोकामना को पूर्ण करते हैं। 

हिन्दुओ का प्रसिद्ध माँ डाटकाली मन्दिर सहारनपुर और देहरादून हाइवे रोड पर स्थित है। मनोकामना सिद्धपीठ यह मन्दिर पूर्णतया माँ काली को समर्पित है। इस मन्दिर को हम माँ भद्रकाली मन्दिर के नाम से भी जानते है। 

माँ काली को भगवान शिव की पत्नी देवी सती का ही अंश माना जाता है। माँ डाटकाली मन्दिर की स्थापना सन 1804 मे हुई थी। 200 सालो से ज्यादा पुराने इस मन्दिर की स्थापना के पीछे एक आश्चर्यजनक ऐतिहासिक कहानी है। 

डाटकाली मन्दिर देहरादून का इतिहास History of Daatkali Mandir Dehradun:

यह बात उन दिनों की है जब देहरादून पर सिक्खों ,गुजरो ,और मुसलमानो द्धारा लगातार हमले हो रहे थे। हमलावर रुपये पैसे गहने, लड़कियाँ और मवेशी आदि लूटकर जंगल मे भाग जाया करते थे। सन 1770 मे नजीबुददौला की म्रत्यु के बाद हालात और बिगड़ते गए। इस समय देहरादून और सहारनपुर मार्ग बना हुआ नहीं था। 

यहाँ पर चारो तरफ घने जंगल थे जिनमे शेर चीते बहुत अधिक थे। इसके बाद हालात तब सुधरे जब देहरादून गोरखों के अधिकार मे आया। सन 1802 मे देहरादून सहारनपुर कच्चा मार्ग बनना शुरू हो गया था। इस मार्ग का सर्वेक्षक ईस्ट इंडिया कंपनी के सर्वेक्षण विभाग का ले. वैब नामक एक अंग्रेज था।

 देहरादून से 14 किलोमीटर पर एक पहाड़ था जिसमे दर्रा बनाया जाना था। यह कार्य अंग्रेज इंजीनियर की देख रेख मे चल रहा था। पूरा दिन वह पहाड़ खोदते और रात मे वह पहाड़ फिर भरा हुआ मिलता। क्योकि पहाड़ रास्ता बनने नहीं दे रहा था इसलिए इंजीनियर  ने मजदूरों को वहीं पर पड़ाव व अलाव जलाने की अनुमति दे दी। 

शिवालिक पर्वत श्रेणियों के सर्वोच्च शिखर पर स्थित चौकी पर कुछ सैनिक तैनात थे जो सतर्कता से पहरेदारी कर रहे थे। तभी सैनिको ने कुछ दूरी पर एक रोशनी देखी। वो उस रोशनी का पता लगाने उसके पास गए। 

वह रोशनी एक लौ के समान दिखाई पड़ रही थी और उसके पास जाने पर वह विलुप्त हो जा रही थी। सैनिक बहुत परेशान हो गये उनको कुछ समझ नहीं आ रहा था। जहाँ पर पहाड़ की खुदाई चल रही थी वहाँ जाकर उन्होंने सारा किस्सा सुनाया। 

अंग्रेज इंजीनियर  कुछ मजदूरों के साथ उस रोशनी को देखने गए। यह घटना 13 जून 1804 की है उस दिन आसाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी विक्रम सम्वत 1860 का दिन था उसी रात अंग्रेज इंजीनियर को सपने मे माता ने बताया की जहाँ रोशनी दिखाई दे रही है वहाँ पर मे अपने अंश के साथ विराजमान हूँ वहाँ खोदने पर तुम्हें मेरी मूर्ति मिलेगी। जब तुम उसे सुरंग से पहले स्थापित कराओगे तभी वहाँ पर यह सुरंग बन पाएगी। सुरंग सहारनपुर वाली तरफ खोदी जा रही थी। 

14 जून 1804 को सुबह उठकर अंग्रेज इंजीनियर कुछ मजदूरों के साथ उस स्थान पर गया जहाँ रोशनी दिखाई दे रही थी। वहाँ पर उसने खुदाई करने को कहा।  इंजीनियर का उस समय आश्चर्य का ठिकाना ना रहा जब उस स्थान से काली की चतुर्हस्ता (चार हाथ ) मूर्ति निकली।

इंजीनियर ने सैनिको के नायक सुखबीर गोसांई को तुरंत उस मूर्ति को स्थापित करने को कहा और अगले दिन 15 जून 1804 आसाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी विक्रम सम्वत 1860 को माँ डाटकाली की स्थापना की गई। घाटी मे मन्दिर बनने के कारण पहले इसे घाटे काली के नाम से जाना जाता था और वहाँ सुरंग बनने के बाद माँ डाटकाली माँ के नाम से विख्यात हो गई। 

डाटकाली मन्दिर देहरादून की विशेषता :-

डाटकाली मन्दिर देहरादून मे एक दिव्य अखण्ड जोत जल रही है। यह बात उस समय की है जब वहाँ पर बारिश बहुत हुआ करती थी। लगातार तीन दिनों तक बारिश होने के कारण मजदूरों को सुरंग के काम से हटना पड़ा। 

चौथे दिन बारिश बंद होने के बाद जब मन्दिर मे दो व्यक्तियों को माँ की जोत जलाने के लिए भेजा गया तो यह देख के सब दंग रह गए की मन्दिर मे जोत अपने आप लगातार जल रही थी और सुरंग का काम बिना किसी रूकावट के चलने लगा। आज भी डाटकाली मन्दिर देहरादून मे माँ की अखण्ड जोत तभी से जल रही है।  

उस समय माँ डाट काली के मन्दिर के आस पास घने जंगल हुआ करते थे जिनमे शेर और चीते बहुत अधिक संख्या मे थे। एक शेर माँ के मन्दिर पर अक्सर आया करता था लोग उसे माता का शेर कहा करते थे। इस शेर के अगले पाँव मे सोने का कड़ा है। 

कालान्तर मे कई शिकारी आये और गये किन्तु इस शेर को कभी कोई नुकसान नहीं पहुँचा पाया। कहा जाता है की यह शेर अब भी मौजूद है और देहरादून मे रहने वाले कई पुण्यात्मा इस शेर के दर्शन कर चुके हैं। 

आज भी श्रद्धालु और भक्तजन कोई भी नया काम करने से पहले तथा कोई भी नया वाहन खरीदने से पहले माँ डाटकाली का दर्शन कर उनका आशीर्वाद जरूर लेते हैं। 

इस मन्दिर मे माँ डाटकाली माता के दर्शनों के लिए भक्तो की भीड़ लगी रहती है। नवरात्रि के अवसर पर यहाँ भंडारा भी किया जाता है। इस भंडारे मे राज्य के विभिन्न हिस्सों से भक्तजन आते है और माँ के दर्शन कर प्रसाद ग्रहण करते हैं। 

डाटकाली मन्दिर देहरादून तक कैसे पहुँचे :-

देहरादून उत्तराखण्ड राज्य की राजधानी है। देहरादून दिल्ली मार्ग पर देहरादून से 14 कि मी की दूरी पर माता डाटकाली मनोकामना सिद्धपीठ मन्दिर स्थित है। डाटकाली मन्दिर देहरादून का यह स्थान वायु मार्ग ,रेल मार्ग तथा सड़को से जुड़ा हुआ है। दिल्ली से इसकी दूरी 285 कि मी है। 

दिल्ली से देहरादून आते समय मोहंड दर्रे के बाद शिवालिक पर्वत श्रेणियाँ शुरू हो जाती है। देहरादून से 14 कि मी पहले यह सिद्ध पीठ मन्दिर स्थित है। देहरादून रेल मार्ग अंतिम स्टेशन है जहाँ से दिल्ली, उज्जैन ,मुंबई, कलकत्ता, लखनऊ आदि के लिए रेल सेवाए उपलब्ध है। 

डाटकाली मन्दिर देहरादून वायु मार्ग से देश के सभी राज्यों से जुड़ा है। इसका हवाई अड्डा देहरादून ऋषिकेश मार्ग पर देहरादून से 28  कि मी की दूरी पर जॉलीग्रांट मे स्तिथ है। देहरादून मे ठहरने के लिए होटल और धर्मशाला उपलब्ध है 

माता श्री डाटकाली सिद्धपीठ मन्दिर घुमावदार रास्ते पर पहाड़ियों मे स्तिथ है जिसके चारो तरफ घना जंगल है। देहरादून दिल्ली मार्ग मन्दिर को छूता हुआ निकलता है इसलिए मन्दिर पहुंचने के लिए भक्तो को पैदल नहीं चलना पड़ता है। 

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