हिन्दू धर्म मे कामधेनु गाय को पूजनीय क्यों माना जाता है ?

हिन्दू धर्म मे कामधेनु गाय को क्यों पूजनीय माना जाता है ?
      
हिन्दू धर्म में हम कामधेनु गाय को पवित्र एवं पूजनीय मानते है। गाय को हम माता स्वरुप में पूजते है, जिस प्रकार एक माता अपने संतान की प्यार एवं दुलार से देखभाल करती है, ठीक उसी प्रकार गाय भी अपने अमृत रूपी दुग्ध से हम सभी का भरण पोषण करती है, इसीलिए हम गाय को माता स्वरूप मे पूजते हैं। 

गाय गोलोक की अमूल्य निधि है, भगवान ने मनुष्यो के कल्याण के लिए आशीर्वाद स्वरुप धरती पर गाय की रचना की। भगवान के इस प्रसादस्वरूप अमृतरूपी गौ दुग्ध का पान कर मनुष्य ही नहीं अपितु देवता भी तृप्त होते हैं इसलिए गौदुग्ध को 'अमृत' कहा जाता है  ऋग्वेद में गौ को 'अदिति' कहा गया है, 'अदिति'  अवनाशी अमृत्व का नाम है इसलिए वेद ने गौ को अमृत्व का प्रतीक बतलाया है


अथर्ववेद के अनुसार- 'धेनु सदानाम रईनाम' अर्थात गाय समृद्धि का मूल स्रोत है। गाय समृद्धि व प्रचुरता की देवी है। वह सृष्टि के पोषण का स्रोत है। इसीलिए वह जननी है। ऐसा माना जाता है की धरती पर जन्मी समस्त गाये माता कामधेनु की ही संताने है। 

कामधेनु हिन्दू धर्म में एक देवी है जिनका स्वरुप गाय का है, पुराणों मे भी गाय को देवी समान बताया गया है, कामधेनु का अर्थ है (काम = इच्छा , धेनु = गाय ) अर्थात ऐसी गाय जो समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करे वही कामधेनु है, कामधेनु का दूसरा नाम माता सुरभि भी है, पुराणों में कामधेनु गाय को नंदा, सुनंदा, सुरभी, सुशीला और सुमन भी कहा गया है। 

हिन्दू धर्म के कई ग्रथों में कामधेनु का वर्णन मिलता है, कहा जाता है की कामधेनु गाय दिव्य शक्तियों से परिपूर्ण थी जिसके कारण वह अपने भक्तो की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करती थी। 

दैवीय शक्तियां प्राप्त कर चुकी इस कामधेनु गाय के दूध को भी अमृत एवं चमत्कारिक शक्तियों से परिपूर्ण माना जाता था। इस गाय के दर्शन मात्र से हे मनुस्य के समस्त कार्य सिद्ध हो जाते थे। 

कामधेनु गाय से सम्बंधित पौराणिक कथा क्या है?  


कामधेनु दिव्य गाय के जन्म से सम्बंधित कई कथाएँ प्रचलित है, एक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है की दिव्य कामधेनु का जन्म क्षीर सागर से सागर मंथन के उपरांत हुआ था उस समय कई दिव्य रत्नो के साथ माता कामधेनु की भी उत्पति हुई थी 


तब देवताओं ने  माता कामधेनु को ऋषि वशिष्ट को प्रदान कर दिया था। कामधेनु का दुग्धपान करने वाला अमर हो जाता है, इसी कारन बहुत से राजाओ ने भी कामधेनु का अपहरण करने का असफल प्रयास किया। 

एक बार देवराज के आठ वसु भ्रमण करते हुए ऋषि के आश्रम पधारे और कामधेनु को हड़पने का प्रयास किया तभी ऋषि वशिष्ट ने उन वसुओं को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दिया।


 तो सभी वसु ऋषि वशिष्ट से क्षमा मांगने लगे। तब ऋषि ने कहा तुम सात वसु एक वर्ष के पूर्व मुक्ति को प्राप्त करोगे परंतु आठवें वसु जिसका नाम घौ था उसी ने कामधेनु को हड़पने का प्रयास किया था


उसे ऋषि वशिष्ट ने कहा तुम दीर्घ आयु तक मनुष्य योनि में रहोगे। यही घौ नामक वसु आगे चलकर महाभारत के भीष्म बने और एक लंबी आयु तक जीवित रहने के पश्चात ही मुक्ति को प्राप्त किया।

हिन्दू धर्म मे कामधेनु गाय को क्यों पूजनीय माना जाता है ?


कामधेनु गाय से संबंधित अन्य कथा कौन सी है?

कामधेनु गाय से संबंधित एक और कथा विष्णु के अवतार भगवान परशुराम  से जुड़ी है जिसके अनुसार एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना के साथ जंगलों को पार करता हुआ जमदग्नि ऋषि (भगवान परशुराम के पिता) के आश्रम में विश्राम करने के लिए पहुंचा। 

महर्षि ने राजा को अपने आश्रम का मेहमान समझकर स्वागत सत्कार किया। यह तब की बात है जब ऋषि जमदग्रि के पास देवराज इन्द्र से प्राप्त दिव्य गुणों वाली कामधेनु नामक अद्भुत गाय थी। 

राजा नहीं जानते थे कि यह गाय कोई साधारण पशु नहीं, वरन् दैवीय गुणों वाली कामधेनु गाय है, लेकिन जब राजा ने गाय के चमत्कार देखे तो वे दंग रह गए। महर्षि के  आश्रम में अधिक सुविधाएं नहीं थीं।

लेकिन महर्षि ने कामधेनु गाय की मदद से कुछ ही पलों में राजा और उनकी पूरी सेना के लिए भोजन का प्रबंध कर दिया। कामधेनु के ऐसे विलक्षण गुणों को देखकर सहस्त्रार्जुन को ऋषि के आगे अपना राजसी सुख कम लगने लगा।


 अब उनके मन में महर्षि के प्रति ईर्ष्या उत्पन्न होने लगी। लेकिन सबसे पहले राजा ने सीधे ही ऋषि जमदग्नि से कामधेनु को मांगा। किंतु जब ऋषि जमदग्नि ने कामधेनु को आश्रम के प्रबंधन और जीवन के भरण-पोषण का एकमात्र जरिया बताकर उसे देने से इंकार कर दिया। 

राजा ने क्रोधित होकर ऋषि जमदग्नि के आश्रम को उजाड़ दिया। लेकिन यह सब करने के बाद जैसे ही राजा सहस्त्रार्जुन अपने साथ कामधेनु को ले जाने लगा तो तभी वह गाय उसके हाथों से छूट कर स्वर्ग की ओर चली गई।

कुछ समय के पश्चात महर्षि के पुत्र भगवान परशुराम आश्रम लौटे और जब उन्होंने यह दृश्य देखा तो हैरान रह गए। इस हालात का कारण पूछने पर उनकी माता रेणुका ने उन्हें सारी बातें विस्तारपूर्वक बताई। परशुराम माता-पिता के अपमान और आश्रम को तहस नहस देखकर आवेश में आ गए। 

ततक्षण परशुराम ने उस दुष्ट दुराचारी सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना का सम्पूर्ण विनाश करने का संकल्प लिया। परशुराम अपने परशु अस्त्र को साथ लेकर सहस्त्रार्जुन के नगर महिष्मतिपुरी पहुंचे। भगवान परशुराम ने दुष्ट सहस्त्रार्जुन की हजारों भुजाएं और धड़,परशु से काटकर कर उसका वध कर दिया।

कामधेनु गाय में देवताओं का वास क्यों माना जाता है? 

ऐसा माना गया है की कामधेनु गाय में समस्त देवताओ का वास होता है। गाय के सींगो मे  तीनों लोकों के देवी देवता विराजमान हैं। सृस्टि के रचियता ब्रम्हा जी, पालनकर्ता श्री हरी विष्णु गाय के सींगों के नीचे के हिस्से में विराजमान है तो गाय के सींगो के मध्य  में शिव शंकर शोभायमान है। 


गौ के मस्तक पर माँ गौरी तथा नासिका मे भगवान कार्तिकेय का वास है। सूर्य और  चंद्र देव  आखों में विराजते हैं , गाय के खुरों में सर्प तथा नाग मध्य मे अन्य देवी देवता तथा रोमकूपों मे महर्षिगण विराजमान है। 

गौ माता के पिछले भाग तथा उनके गोबर मे माँ लक्ष्मी विराजमान हैं। गाय के चारो पैरो मे धर्म,अर्थ,काम तथा मोक्ष का वास है इसी कारण गाय को धात्री भी कहा गया है। धरती पर उपस्थित सभी गायें माता कामधेनु का ही प्रतिबिम्ब हैं। इसी लिए सभी गाय कामधेनु के ही समान पूजनीय है।   

गाय के बारे मे कुछ रोचक तथा वैज्ञानिक  तथ्य जानिए   

  • गाय का गोबर परमाणु विकिरण को कम कर सकता है। गाय के गोबर में अल्फा, बीटा और गामा किरणों को अवशोषित करने की क्षमता है।घर के बाहर गोबर लगाने की परंपरा के पीछे यही वैज्ञानिक कारण है।
  • गाय के सींगों का आकार पिरामिड की तरह होने के कारणों पर भी शोध करने पर पाया कि गाय के सींग शक्तिशाली एंटीना की तरह काम करते हैं और इनकी मदद से गाय सभी आकाशीय ऊर्जाओं को संचित कर लेती है और वही ऊर्जा हमें गौमूत्र, दूध और गोबर के द्वारा प्राप्त होती है।
  • गाय की कूबड़ ऊपर की ओर उठी और शिवलिंग के आकार जैसी होती है। इसमें सूर्यकेतु नाड़ी होती है। यह सूर्य की किरणों से निकलने वाली ऊर्जा को सोखती है, जिससे गाय के शरीर में स्वर्ण उत्पन्न होता है। जो सीधे गाय के दूध और मूत्र में मिलता है। इसलिए गाय का दूध हल्का पीला होता है। यह पीलापन कैरोटीन तत्व के कारण होता है। जिससे कैंसर और अन्य बीमारियों से बचा जा सकता है।
  •  गाय में जितनी सकारात्मक ऊर्जा होती है उतनी किसी अन्य प्राणी में नहीं।
  • गाय के गौ मूत्र में माँ गंगा का वास हैं। 
  •  गाय की रीढ़ में स्थित सूर्यकेतु नाड़ी सर्वरोगनाशक, सर्वविषनाशक होती है।
  • गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है, ‍जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी ऑक्सीजन लेते और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। पेड़-पौधे इसका ठीक उल्टा करते हैं।
  • देशी गाय के एक ग्राम गोबर में कम से कम 300 करोड़ जीवाणु होते हैं।
  • एक तोला (10 ग्राम) गाय के घी से यज्ञ करने पर एक टन ऑक्सीजन बनती है।
  • विश्व की सबसे बड़ी गौशाला पथमेड़ा, राजस्थान में है।
  • हरित क्रांति से पहले खेतों को गाय के गोबर में गौमूत्र, नीम, धतूरा, आक आदि के पत्तों को मिलाकर बनाए गए कीटनाशक द्वारा किसी भी प्रकार के कीड़ों से बचाया जाता था।

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