अंकोरवाट विष्णु मंदिर - Ankorwat vishnu temple

अंकोरवाट विष्णु मंदिर - Ankorwat vishnu temple


भारत देश अपने आप में सांस्कृतिक  और धार्मिक विरासत के लिए विश्वविख्यात है,यहाँ पर कई ऐसे मंदिर है जो अपने आप में अदिव्तीय है जिनकी शोभा देखने के लिए  देश और विदेश से लाखो दर्शनार्थी और श्रद्धालु आते हैं और यहाँ के मंदिरो की शोभा तथा स्थापत्य और वास्तुकला  को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। 


यहाँ  हम जिस  विश्वविख्यात मंदिर की बात कर रहे है वह वर्तमान समय मे भारत में नहीं अपितु कंबोडिया  मे स्थित है परन्तु प्राचीनकाल मे जब सम्पूर्ण आर्यावर्त था तब यही कंबोडिया कंबोज के नाम से इसी आर्यावर्त का हिस्सा था। 

अंकोरवाट का इतिहास क्या है?


कंबोडिया मे स्थित अंकोरवाट मंदिर श्री हरी विष्णु का अत्यंत विशाल मंदिर है। इस मंदिर में  साक्षात श्री हरी विष्णु शोभायमान हैं। अंकोरवाट - दक्षिणपूर्व एशिया के सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों में से एक है जो शक्तिशाली  खमेर साम्राज्य के बाद शताब्दियों तक घने जंगलों में छुप गया था अंकोरवाट कंबोडिया में स्तिथ अत्यंत विशाल मंदिर और धार्मिक स्मारक है। 

यह मूल रूप से खमेर साम्राज्य के लिए भगवान विष्णु के एक हिन्दू मंदिर के रूप मे बनाया गया था । यह मंदिर कंबोडिया के अंकोर मे है जिसका पुराना नाम 'यशोधरपुर' था। 12 वीं शताब्दी के लगभग सूर्यवर्मन  द्वितीय ने अंग्कोरथोम में विष्णु का एक विशाल मंदिर बनवाया। लेकिन चौदहवीं शताब्दी तक आते-आते यहां बौद्ध धर्म का शासन स्थापित हो गया और मंदिर को बौद्ध रूप दे दिया गया। 



अंकोरवाट मन्दिर की वास्तुकला तथा स्थापत्य कला

इस मंदिर की रक्षा भी एक चारो ओर से घिरी हुयी एक खाई करती है जिसकी चौड़ाई लगभग 700  फुट है। दूर से यह खाई झील के समान प्रतीत  होती है। मंदिर के पश्चिम की ओर इस खाई को पार करने के लिए एक पुल बना हुआ है।

पुल के पार मंदिर में प्रवेश के लिए एक विशाल द्वार निर्मित है जो लगभग 1000  फुट चौड़ा है। इसकी दीवारों पर समस्त रामायण मूर्तियों में स्थापित है। इस मंदिर को देखने से ज्ञात होता है कि अंग्कोरथोम जिस कंबुज देश की राजधानी था उसमें विष्णु, शिव, शक्ति, गणेश आदि देवताओं की पूजा प्रचलित थी। 

मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में बना यह मंदिर आज भी संसार का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है जो सैकड़ों वर्ग मील में फैला हुआ है। यह मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से विश्व की एक आश्चर्यजनक स्थल  है और भारत के प्राचीन पौराणिक मंदिर के अवशेषों में तो एकाकी है।

अंकोरवाट के इस मंदिर के दीवारों पर बलि-वामन, समुद्र-मंथन, देव-दानव युद्ध, महाभारत तथा रामायण  से सम्बंधित अनेको शिलाचित्र  अतिसुन्दरता से उकेरे गए है। 


अन्य दीवारों पर सीता सवयंवर तथा राम का  धनुष-बाण लिए स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ना, सुग्रीव-बालि युद्ध, अशोक वाटिका में हनुमान की उपस्थिति, राम-रावण युद्ध, सीता की अग्नि परीक्षा और राम की अयोध्या वापसी का अत्यंत सजीव चित्रण किया गया है। 

पौराणिक काल का कंबोज देश कल का कंपूचिया और आज का कंबोडिया जहाँ  बड़ी संख्या में हिन्दू और बौद्ध मंदिर हैं, जो इस बात के साक्षी हैं कि कभी यहां भी हिन्दू धर्म अपने चरम पर था। 

सदियों के काल खंड में 27 राजाओं ने राज किया। कोई हिंदू रहा, कोई बौद्ध। यही वजह है कि पूरे देश में दोनों धर्मों के देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बिखरी पड़ी हैं।

16 वी शताब्दी से पहले ही खमेर साम्राज्य पर आक्रमण की घटनाए बढ़ने लगी और अंगकोर का साम्राज्य तथा कई प्राचीन मंदिर खंडहर में परिवर्तित हो गए। 

19वीं शताब्दी (जनवरी 1860) के मध्य में एक फ्रांसीसी अंवेषक और प्रकृति विज्ञानी हेनरी महोत की नज़र जब इस पर पड़ी तो वो इस बेशकीमती और आलीशान मंदिर को एक बार फिर दुनिया के सामने  ले आया। 

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