भारतवर्ष मे अनेको मंदिर स्थापित हैं, जो अपने आप में स्वयं आश्चर्यजनक हैं। भारत में जगतगुरु शंकराचार्य ने हिंदू धर्म से जुड़े आस्था के केंद्र 'चार धाम' की स्थापना की थी. इन धामों में से एक धाम श्री जगन्नाथ धाम हैं यह भारत के उड़ीसा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी मे स्तिथ है।
जगन्नाथ पुरी भारत मे ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व मे सुप्रसिद्ध है। पुरी एक ऐसा स्थान है,जिसे हजारो वर्षो से कई नामो से जाना जाता है जैसे :- नीलगिरि, नीलाद्रि, नीलांचल, पुरुषोत्तम, शंखश्रेष्ठ, श्रीश्रेष्ठ, जगन्नाथ धाम, जगन्नाथ पुरी आदि।
वैषणव संप्रदाय का यह जगन्नाथ मंदिर हिन्दुओ का प्रसिद्ध मंदिर है जो सम्पूर्ण चराचर जगत के स्वामी श्री हरी विष्णु के 8 वें अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है।
जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। पुरी नगर श्री कृष्ण यानि जगन्नाथ जी की पावन नगरी कहलाती है। पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है।यह भगवान विष्णु के चार धामों में से एक है।
इसे श्रीक्षेत्र, श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरि और श्री जगन्नाथ पुरी भी कहते हैं। यहां लक्ष्मीपति विष्णु ने तरह-तरह की लीलाएं की थीं।
ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार यहां भगवान विष्णु पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतरित हुए और सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए। सबर जनजाति के देवता होने के कारण यहां भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं की तरह है।
पहले कबीले के लोग अपने देवताओं की मूर्तियों को काष्ठ से बनाते थे।इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धामों में से एक माना जाता है। इस मंदिर में श्रीकृष्ण जगन्नाथ रूप मे अपने बड़े भाई बलराम तथा अपनी बहन सुभद्रा के साथ विराजमान है।
जगन्नाथ मंदिर का पौराणिक इतिहास क्या है?
गंग वंश काल से प्राप्त हुए प्रमाणों के अनुसार जगन्नाथ पुरी मंदिर का निर्माण कलिंग के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने शुरू कराया था। इस राजा ने अपने शासनकाल यानि 1078 से 1148 के बीच मंदिर के जगमोहन और विमान भाग का निर्माण कराया था।
इसके बाद सन् 1197 में में ओडिशा के शासक भीम देव ने इस मंदिर के वर्तमान रूप का निर्माण कराया। माना जाता है कि जगन्नाथ मंदिर में 1558 से ही पूजा अर्चना की जा रही है। लेकिन इसी वर्ष एक अफगान ने ओडिशा पर आक्रमण किया था और भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों और मंदिर को ध्वस्त करवा दिया।
लेकिन बाद में राजा रामचंद्र देव ने जब खुर्दा में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया तो जगन्नाथ मंदिर और इसकी मूर्तियों को दोबारा प्रतिस्थापित कराया। तभी से से इस मंदिर में दर्शन की सुविधा उपलब्ध है।
जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
जगन्नाथ मन्दिर की नींव राजा इंद्रदयुम्न द्धारा रखी गयी थी। राजा इंद्रदयुम्न ने बनवाया था यह मंदिर राजा इंद्रदयुम्न मालवा का राजा था जिनके पिता का नाम भारत और माता का नाम सुमति था। एक रात भगवान विष्णु ने उनको सपने में दर्शन दिए और कहा नीलांचल पर्वत की एक गुफा में मेरी एक मूर्ति है उसे नीलमाधव कहते हैं।
तुम एक मंदिर बनवाकर उसमें मेरी यह मूर्ति स्थापित कर दो। राजा ने अपने सेवकों को नीलांचल पर्वत की खोज में भेजा। उसमें से एक था ब्राह्मण विद्यापति,विद्यापति ने सुन रखा था कि सबर कबीले के लोग नीलमाधव की पूजा करते हैं।
उन्होंने अपने देवता की इस मूर्ति को नीलांचल पर्वत की गुफा में छुपा रखा है। वह यह भी जानता था कि सबर कबीले का मुखिया विश्ववसु नीलमाधव का उपासक है और उसी ने मूर्ति को गुफा में छुपा रखा है।
चतुर विद्यापति ने मुखिया की बेटी से विवाह कर लिया। आखिर में वह अपनी पत्नी के जरिए नीलमाधव की गुफा तक पहुंचने में सफल हो गया। उसने मूर्ति चुरा ली और राजा को लाकर दे दी। विश्ववसु अपने आराध्य देव की मूर्ति चोरी होने से बहुत दुखी हुआ।
अपने भक्त के दुख से भगवान भी दुखी हो गए। भगवान गुफा में लौट गए, लेकिन साथ ही राज इंद्रदयुम्न से वादा किया कि वो एक दिन उनके पास जरूर लौटेंगे बशर्ते कि वो एक दिन उनके लिए विशाल मंदिर बनवा दे। राजा ने मंदिर बनवा दिया और भगवान विष्णु से मंदिर में विराजमान होने के लिए कहा।
भगवान ने कहा कि तुम मेरी मूर्ति बनाने के लिए समुद्र में तैर रहा पेड़ का बड़ा टुकड़ा उठाकर लाओ, जो द्वारिका से समुद्र में तैरकर पुरी आ रहा है। राजा के सेवकों ने उस पेड़ के टुकड़े को तो ढूंढ लिया लेकिन सब लोग मिलकर भी उस पेड़ को नहीं उठा पाए।
तब राजा को समझ आ गया कि नीलमाधव के अनन्य भक्त सबर कबीले के मुखिया विश्ववसु की ही सहायता लेना पड़ेगी। सब उस वक्त हैरान रह गए, जब विश्ववसु भारी-भरकम लकड़ी को उठाकर मंदिर तक ले आए।
अब बारी थी लकड़ी से भगवान की मूर्ति गढ़ने की। राजा के कारीगरों ने लाख कोशिश कर ली लेकिन कोई भी लकड़ी में एक छैनी तक भी नहीं लगा सका।
तब तीनों लोक के कुशल कारीगर भगवान विश्वकर्मा एक बूढ़े व्यक्ति का रूप धारण कर आए। उन्होंने राजा को कहा कि वे नीलमाधव की मूर्ति बना सकते हैं, लेकिन साथ ही उन्होंने अपनी शर्त भी रखी कि वे 21 दिन में मूर्ति बनाएंगे और अकेले में बनाएंगे।
कोई उनको बनाते हुए नहीं देख सकता। उनकी शर्त मान ली गई। लोगों को आरी, छैनी, हथौड़ी की आवाजें आती रहीं। राजा स्वयं को रोक न सका और सभी शर्तों और चेतावनियों को दरकिनार करते हुए राजा ने कमरे का दरवाजा खोलने का आदेश दिया।
जैसे ही कमरा खोला गया तो बूढ़ा व्यक्ति गायब था और उसमें 3 अधूरी मूर्तियां मिली पड़ी मिलीं। भगवान नीलमाधव और उनके भाई के छोटे-छोटे हाथ बने थे, लेकिन उनकी टांगें नहीं बनी थी।
जबकि सुभद्रा के हाथ-पांव बनाए ही नहीं गए थे। राजा ने इसे भगवान की इच्छा मानकर इन्हीं अधूरी मूर्तियों को स्थापित कर दिया। तब से लेकर आज तक तीनों भाई बहन इसी रूप में विद्यमान हैं।
जगन्नाथ मंदिर की वास्तु और स्थापत्य कला
श्री जगन्नाथ जी का मंदिर श्री कृष्ण भक्तों की आस्था का केंद्र ही नहीं अपितु स्थापत्य और वास्तुकला का भी बेजोड़ नमूना है। इसकी बनावट के कुछ रहस्य तो आज भी रहस्य ही हैं जिनका भेद हमारे वैज्ञानिक आज तक नहीं लगा पाए हैं।
जगन्नाथ मंदिर का सम्पूर्ण क्षेत्र 400,000 वर्ग फुट (37,000 मी2) में फैला है और चहुँ ओर से दीवारों से घिरा है। कलिंग शैली के मंदिर स्थापत्यकला और शिल्प के आश्चर्यजनक प्रयोग से परिपूर्ण, जगन्नाथ जी का यह मंदिर, भारत के भव्यतम स्मारक स्थलों में से एक है।
जगन्नाथ मंदिर का मुख्य ढांचा एक 214 फीट (65 मी॰) ऊंचे पत्थर के चबूतरे पर बना है, मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है, जिसके उच्च शिखर पर श्री हरि विष्णु का दिव्य श्री सुदर्शन चक्र बना है। इसे नीलचक्र भी कहते हैं।
अष्टधातु से निर्मित यह चक्र अत्यंत पवित्र माना जाता है इसकी खास बात यह है की यह शहर के किसी भी कोने से देखने पर मध्य मे ही दिखाई देता है।
जगन्नाथ मंदिर के अंदर गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। यह भाग इसे घेरे हुए अन्य भागों की अपेक्षा अधिक वर्चस्व वाला है। इससे लगे घेरदार मंदिर की पिरामिडाकार छत और लगे हुए मण्डप, अट्टालिकारूपी मुख्य मंदिर के शिखर आपस मे निकट होते हुए ऊंचे होते गये हैं।
इसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है की मानो इस मंदिर को एक पर्वत और उसकी छोटी -छोटी पहाड़ियाँ तथा उनके टीलों के समूहों ने घेर रखा हो। मुख्य भवन एक 20 फीट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है तथा दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है।
जगन्नाथ मन्दिर मे एक भव्य सोलह किनारों वाला एकाश्म स्तंभ, मुख्य द्धार के ठीक सामने स्थित है। इस द्धार की रक्षा दो सिंहों द्वारा की जा रही हैं। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा, इस मंदिर के मुख्य देव हैं। इनकी मूर्तियां, एक रत्न मण्डित पत्थर से बने चबूतरे पर गर्भ गृह में स्थापित हैं।
इतिहास अनुसार इन मूर्तियों की अर्चना मंदिर निर्माण से कहीं पहले से की जाती रही है। सम्भव है, कि यह प्राचीन जनजातियों द्वारा भी पूजित रही हो।
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