भारत वर्ष मे अनेको त्योहार पुरे धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं। भारत देश को हम त्योहारों का देश भी कह सकते हैं। भारत मे हर छोटे बड़े त्योहार पूरी ख़ुशी के साथ मनाया जाता है। इन्ही मे से एक त्योहार है लोहड़ी का त्योहार जिसे उत्तरभारत मे सभी मिल जुल कर मनाते हैं।
लोहड़ी का यह त्योहार उत्तरभारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है जिसे मकरसंक्रांति के त्योहार के एक दिन पहले पौष महीने के आखिरी रात को मनाया जाता है। लोहड़ी के त्योहार के अगले दिन मकरसंक्रांति का त्योहार मनाया जाता है।
लोहड़ी का यह त्योहार मुख्य रूप से पंजाब और हरयाणा मे मनाया जाता है। इस त्योहार मे रात के समय घर तथा आस पड़ोस के लोग एक खुले स्थान पर एक आग का घेरा बना कर उसके चारो तरफ गीत गाते हुए घूमते है और आपस मे रेवड़ी ,मूंगफली और लावा आदि खाते हैं और एक दूसरे को बाटते है।
लोहड़ी शब्द लोहड़ी की पूजा के समय उपयोग मे आने वाले सामान ल(लकड़ी) ओह(गोहा सूखे उपले) डी(रेवड़ी) का भी सूचक है। लोहड़ी का यह त्योहार पौष महीने की ठिठुराती सर्दी से बचने मे भी सहायता प्रदान करती है। लोहड़ी पर्व की यह व्यवहारिकता इसे एक मौसमी त्योहार का स्थान भी देती है।
लोहड़ी का यह त्योहार वैशाखी के त्योहार की तरह पंजाब के गाँव वहाँ की फसलों और मौसम से भी सम्बंधित है। लोहड़ी के दिन पुरानी फसलों को काटकर नई फसल लगाई जाती है और इसकी पूजा की जाती है। इस दिन गाँव मे मूली और गन्ने की फसल लगाई जाती है। लोहड़ी का यह त्योहार बहन बेटी और बच्चो का त्योहार माना जाता है।
लोहड़ी के त्योहार से सम्बन्धित पौराणिक मान्यता
लोहड़ी के त्योहार से सम्बन्धित पौराणिक मान्यता ये है की दक्ष प्रजापति की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी सती ने जब भगवान शिव को यज्ञ मे न बुलाने पर उसी यज्ञ कुंड की अग्नि मे कूद कर आत्मदाह किया था तो इसी अग्नि दहन की याद मे यह अग्नि जलाई जाती है। यज्ञ के समय अपने जमाई शिव का भाग न निकालने का दक्ष का प्रायश्चित ही इस अग्नि मे दिखाई देता है।
लोहड़ी से सम्बन्धित रीति रिवाज
लोहड़ी का यह त्योहार बहन और बेटियों के लिए बहुत खास होता है।यह त्योहार पंजाबियों के लिए बहुत खास महत्व रखता है। इस त्योहार मे जिस नववधू की तथा पहले बच्चे की पहली लोहड़ी होती है तो उसे बहुत ही खास तरीके से मनाया जाता है।
नववधू के आगमन पर उस घर मे लोहड़ी के त्योहार की विशेष रूप से तैयारी की जाती है। लोहड़ी के इस खास मौके पर बहन और बेटियों को घर बुलाया जाता है और उनका आदर सत्कार करके और ढेरो उपहार देकर उनकी विदाई की जाती है।
बच्चो का त्योहार :-
लोहड़ी का यह त्योहार बच्चो के लिए भी खास होता है। इस दिन के लिए बच्चे पहले से ही लोहड़ी के गीतों को गाते हुए लकड़ी और उपले इकठ्टे करने लग जाते हैं।
वह इस लोहड़ी के त्योहार के लिए कुछ दिन पूर्व से ही महामायी का चंदा मांगकर उनसे रेवड़ी गजक मूंगफली आदि खरीदकर सामूहिक लोहड़ी मे जलाते हैं और एक दूसरे मे बाटकर मिलजुल कर खाते और खुशियाँ मनाते हैं।
खेत और खलिहान से सम्बंधित :-
लोहड़ी का यह त्योहार खेतो और उनकी फसलों के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। इस दिन किसान खेतो मे रबी की फसल को काटकर घर लाते है और उन्हें लोहड़ी की आग मे अग्नि देवता को समर्पित कर उसकी पूजा करते हैं और जश्न मनाते है तथा ईश्वर से अपना आभार प्रकट करते हैं और आशीर्वाद मांगकर अपनी और अपनों के उन्नति की कामना करते हैं।
लोहड़ी की कहानी
लोहड़ी के त्योहार पर लोहड़ी की कहानी विशेष महत्व रखती है। लोहड़ी के त्योहार के दिन दुल्ला भट्टी की कहानी को खास तौर पर कहा और सुना जाता है। दुल्ला भट्टी मुगल शाषक सम्राट अकबर के शासनकाल के समय पर पंजाब में रहता था।
वहाँ के संदल बाजार मे लड़कियों को जबरदस्ती अमीर लोगो को बेचा जाता था। एक बार सुंदरी और मुंदरी नाम की दो लड़कियों को जब बेचा जा रहा था तब दुल्ला भट्टीने अपनी योजना बना कर उन लड़कियों को बचाया और उनकी शादी एक हिन्दू लड़के से भी करवाई।
दुल्ला भट्टी को गुलाम बाजार में हिंदू लड़कियों को जबरन बेचने से बचाने के लिए आज भी पंजाब में एक नायक के रूप में याद किया जाता है। कहानी में बताई गई दोनो लड़कियां सुंदरी और मुंदरी बाद में धीरे-धीरे पंजाब की लोककथाओं का विषय बन गईं थी।
लोहड़ी का पारंपरिक लोकगीत :-
लोहड़ी का यह त्योहार लोहड़ी के पारंपरिक गीतों को गाये बगैर अधूरा सा लगता है। बच्चे बड़े और आसपड़ोस के सभी लोग लोहड़ी की आग को जलाकर उसके चारो तरफ गीत गाते हुए घूमते हैं। लोहड़ी के ये गीत दुल्ला भट्टी पर आधारित होते हैं।
सुंदर मुंदरिये ! …………हो तेरा कौन बेचारा, …………हो दुल्ला भट्टी वाला, ………हो दुल्ले घी व्याही, …………हो सेर शक्कर आई, ……………हो कुड़ी दे बाझे पाई, …………हो कुड़ी दा लाल पटारा, ………हो
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