जगन्नाथ मंदिर की रथयात्रा क्यों निकाली जाती है ? | jagannath temple puri rath yatra

 
जगन्नाथ मंदिर की रथयात्रा क्यों निकाली जाती है ?


उड़ीसा में स्तिथ श्री जगन्नाथ जी का मंदिर जहाँ अपनी भव्यता और अद्भुत रहस्यों के लिए विश्वप्रसिद्ध है वही वह मन्दिर अपनी विशाल और अनोखी  रथयात्रा के कारण भी लोगो मे आकर्षण का मुख्य केंद्र बना हुआ है। 

जगन्नाथ पुरी में मध्यकाल से ही  जगन्नाथ जी की हर वर्ष पूरे हर्षोल्लास के साथ रथ यात्रा निकाली जाती है।यह रथयात्रा किसी त्यौहार से कम नहीं होता है,यह रथयात्रा पुरी  के अलावा देश विदेश के कई हिस्सों मे भी निकाली जाती है।

जगन्नाथ मंदिर की रथयात्रा क्यों निकाली जाती है Why is the Rath Yatra of Jagannath Temple taken out?

प्रतिवर्ष जगन्नाथ रथयात्रा पुरी  में लाखों श्रद्धालु भगवान श्री जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा का रथ खींचने और उनके दर्शन करने के लिए विश्व के कोने-कोने से यहाँ पहुंचते हैं। प्रतिवर्ष जगन्नाथ रथयात्रा के लिए नए रथ बनाये जाते हैं। पोड पीठा इस त्यौहार का एक मुख्य मिठाई है जो बहुत ही प्रसिद्ध है। 

रथयात्रा  के दौरान तीनो भगवान श्री जगन्नाथ जी ,बलभद्र और सुभद्रा का 208 किलो ग्राम स्वर्ण से श्रृंगार किया जाता है।ब्रिटिश शासन के काल में जगन्नाथ रथ यात्रा के त्यौहार को जुग्गेरनट कहा जाता था इसके बड़े और वजनदार रथों के कारण।

आज तक जितनी बार भी रथ यात्रा मनाया गया है पुरी में हर बार बारिश हुई है।विश्व भर में जगन्नाथ मंदिर ही ऐसा मंदिर है जहाँ से भगवान् के स्तूप या मूर्ति को मंदिर से बहार निकाला जाता है।

जगन्नाथ मंदिर की रथयात्रा का इतिहास History of Jagannath Temple Rath Yatra 

श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा हर साल जुलाई महीने के शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन निकाली जाती है। यह यात्रा गुंडिचा मंदिर तक जाकर पुन: आती है।रथयात्रा का महोत्सव 10 दिन का होता है

जो शुक्ल पक्ष के इग्यारहवे दिन समाप्त होता है ,इस दिन भगवान कृष्ण,उनके भाई बलराम तथा बहन सुभद्रा को रथो मे बैठाकर गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है ,तीनो रथो को भव्य रूप से सजाया जाता है जिसकी तैयारी कई महीने पहले से शुरू हो जाती है। 

ऐसा माना जाता है की गुंडिचा मंदिर मे देवताओ के शिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ ,बलभद्र ,सुभद्राजी  की प्रतिमाओं का निर्माण किया था। इसलिए गुंडिचा मंदिर को ब्रम्हलोक या जनकपुरी भी कहा जाता है।

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा जब निकाली जाती है तब उस रथयात्रा मे प्रभु जगन्नाथ के साथ बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम जी भी साथ होते हैं। तीनों भाई बहन अपने जिन रथो  मे सवार हो कर भक्तो को अपने दर्शन देते है उन रथो का विवरण इस प्रकार है।  

भगवान जगन्नाथ के रथों के नाम Names of Chariots of Lord Jagannath

नंदिघोषा रथ :- 

यह रथ भगवान श्री जगन्नाथ के रथ का नाम है। इसे गरुडध्वजा और कपिलध्वजा भी कहा जाता है। इसमें भगवान का साथ मदनमोहन देते हैं। इस रथ के घोड़े श्वेत रंग के होते हैं। तथा रथ पर हनुमान जी और नरसिंह भगवान का प्रतीक होता है। इस रथ पर रक्षा का प्रतीक सुदर्शन स्तम्भ भी होता है। इस रथ की रस्सी को सजाने मे लगभग 1100 मीटर कपडा लगता है। 


कुल चक्के - 16 
कुल लकड़ी के टुकड़े – 832
ऊंचाई – 45′ 2″ 
लम्बाई और चौड़ाई – 34′ 6″ x 34′ 6″
कपड़ों के रंग – लाल और पीले रंग का कपडा
रक्षक  – गरुड़
सारथी का नाम – दारुका   
झंडा(ध्वज) – त्रैलोक्यवाहिनी 
घोड़े – शंखा, बलाहंखा, सुवेता, हरिदश्व           
रस्सी – शंखाचुडा नागुनी 
नौ देवताओं कि अध्यक्षता – वराह, गोबर्धन, कृष्णा (गोपी कृष्णा), नुर्सिंघा, राम, नारायण, त्रिविक्रमा, हनुमान, रूद्र


तालध्वजा रथ :- 

भगवान बलभद्र के रथ का नाम तालध्वजा, नंगलध्वजा है। इसमें उनका साथ रामकृष्ण देते हैं। इस रथ पर महादेव जी का प्रतीक होता है। इस रथ के घोड़ो का रंग नीला होता है। 
shri jagannaath dhaam shraddhaa aur rahasy
कुल चक्के – 14
कुल लकड़ी के टुकड़े – 763
ऊंचाई – 43′ 3″
लम्बाई और चौड़ाई – 33′ x 33′
कपड़ों के रंग – लाल, नीला-हरा रंग का कपडा
रखवाला – बासुदेव
सारथी का नाम – मताली
झंडा(ध्वज) – उन्नानी
घोड़े – त्रिब्र, घोरा, दीर्गशर्मा, स्वोर्नानव
रस्सी – बासुकी नागा
नौ देवताओं कि अध्यक्षता – गणेश, कार्तिके, सर्वमंगला, प्रलाम्बरी, हतायुधा, मृत्युन्न्जय, नतमवर, मुक्तेश्वर, शेश्देवा


दर्पदलना रथ :- 

सुभद्रा के रथ का नाम है दर्पदलना, देवदलन, पद्मध्वज है। रथ में देवी दुर्गा का प्रतीक मढ़ा जाता है। इस रथ के घोड़े कॉफी कलर के होते हैं। 

shri jagannaath dhaam shraddhaa aur rahasy
कुल चक्के – 12
कुल लकड़ी के टुकड़े – 593
ऊंचाई – 42′ 3″
लम्बाई और चौड़ाई – 31′ 6″ x 31′ 6″
कपड़ों के रंग – लाल, काले रंग का कपडा
रखवाला – जयदुर्गा
सारथी का नाम – अर्जुन
झंडा(ध्वज) – नादम्बिका
घोड़े – रोचिका, मोचिका, जीता, अपराजिता
रस्सी – स्वर्नाचुडा नागुनी
नौ देवताओं कि अध्यक्षता – चंडी, चामुंडा, उग्रतारा, वनदुर्गा, शुलिदुर्गा, वाराही, श्यामकाली, मंगला, विमला

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