गर्मियों के दिन थे। दोपहर का समय हो रहा था। सूरज बहुत तेजी से चमक रहा था। बहुत ही तेज़ गर्मी पड़ रही थी। गर्मी की वजह से सभी प्यासे हो रहे थे।
दोपहर की उस चिलचिलाती हुयी धूप मे कहीं से उड़ता हुआ एक प्यासा कौआ आया उसे बहुत तेजी से प्यास लगी हुई थी और वह पानी की तलाश में बहुत देर से इधर – उधर भटक रहा था। परन्तु उसे कही पर भी पानी नहीं मिला जिसे पीकर वह अपनी प्यास बुझा सके।
वह बहुत निराश हो चुका था आखिर में वह थक कर एक बाग में पहुँचा। वहाँ वह कौआ पेड़ की एक शाखा पर बैठ गया। पेड़ पर बैठे हुए उसकी नजर वृक्ष के नीचे रखे हुए एक घड़े पर गई।
घड़े को देखते ही वह बहुत खुश हो गया और वह तुरंत उड़कर उस घड़े के पास पंहुचा। परन्तु वहां पहुँच कर उसने देखा कि घड़े में बहुत कम पानी है। वह पानी पीने के लिए नीचे झुका लेकिन उसकी चोंच पानी तक न पहुँच सकी।
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि घड़े में पानी बहुत कम था। परन्तु वह कौआ निराश नहीं हुआ बल्कि पानी कैसे पिया जाए यह उपाय सोचने लगा। तभी उस कौवे को एक उपाय सूझा उसने अपने आस – पास बिखरे हुए बहुत सारे कंकरो को उठाकर घड़े में डालने शुरू कर दिए।
घड़े के थोड़े पानी में लगातार कंकड़ डालने से पानी ऊपर आ गया। और फिर उस कौवे ने आराम से वह पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई और वहां से उड़ गया।
सीख :- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की व्यक्ति को किसी भी कठिन परिस्तिथि मे निराश नहीं होना चाहिए। अपितु ऐसी कठिन परिस्तिथि मे हमें धैर्य एवं विवेक के साथ कार्य करना चाहिए। धैर्य एवं विवेक द्वारा किया गया कार्य ही व्यक्ति को निराशा से निकाल कर सफलता की ओर अग्रसर करता है।
सम्बन्धित कहानियाँ :-
Post a Comment