शहर मे गोविन्द दास नाम के धनी सेठ रहते थे। उनके पास किशन नाम का एक व्यक्ति काम करता था। सेठ गोविन्द दास उस व्यक्ति पर बहुत भरोसा करते थे। वह सेठ जी का विश्वासपात्र व्यक्ति था।
सेठ जी का जो भी जरूरी काम हो वह उसी व्यक्ति को कहते थे। और वह व्यक्ति भगवान का बहुत बड़ा भक्त था l वह सदैव भगवान के भजन कीर्तन और सत्संग आदि मे लगा रहता था।
एक दिन उस व्यक्ति ने सेठ जी से श्री जगन्नाथ धाम यात्रा करने के लिए कुछ दिन की छुट्टी मांगी सेठ ने उसे छुट्टी देते हुए कहा- भाई ! "मैं तो हूं संसारी आदमी हूँ हमेशा काम में व्यस्त रहता हूं जिसके कारण कभी तीर्थ लाभ नहीं ले पाता।
तुम जा ही रहे हो तो यह 100 रुपए मेरी तरफ से श्री जगन्नाथ प्रभु के चरणों में समर्पित कर देना।" भक्त सेठ से सौ रुपए लेकर श्री जगन्नाथ धाम यात्रा पर निकल गया।
कई दिनो की पैदल यात्रा करने के बाद जब वह व्यक्ति श्री जगन्नाथ पुरी धाम पहुंचा तो मंदिर की ओर प्रस्थान करते समय उसने रास्ते में देखा कि बहुत सारे संत, भक्त जन, वैष्णव जन, हरि नाम का जाप और भजन बड़ी मस्ती में कर रहे हैं।
सभी की आंखों से अश्रु की धारा बह रही है। सभी भाव विभोर हो रहे हैं। और जोर-जोर से हरि बोल, हरि बोल का जयकारा लगा रहे हैं। वह व्यक्ति भी वहीं रुक कर हरिनाम कीर्तन का आनंद लेने लगा।
फिर उसने देखा कि कीर्तन करने वाले भक्तजनो का इतनी देर से कीर्तन करने के कारण होंठ सूख रहे हैं। और वह कुछ भूखे भी प्रतीत हो रहे हैं। भक्त किशन ने उन सभी कीर्तन करने वाले भक्तो को भोजन कराने के लिए सोचा।
किन्तु उन्हें भोजन कराने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे। फिर उसने सोचा क्यों ना सेठ जी के दिए हुए सौ रुपए से ही मैं इन भक्तों को भोजन करा दूँ। उसने उन सभी को उन सौ रुपए में से भोजन की व्यवस्था कर दी।
सबको भोजन कराने में उसे कुल 98 रुपए खर्च करने पड़े। उसके पास दो रुपए बच गए उसने सोचा चलो अच्छा हुआ दो रुपए जगन्नाथ जी के चरणों में सेठ जी के नाम से चढ़ा दूंगा l जब सेठ जी पूछेंगे तो मैं कहूंगा पैसे चढ़ा दिए।
सेठ जी यह तो नहीं कहेगे की 100 रुपए चढ़ाए। सेठजी पूछेंगे पैसे चढ़ा दिए तो मैं बोल दूंगा कि, पैसे चढ़ा दिए। झूठ भी नहीं होगा और काम भी हो जाएगा।
भक्त किशन ने श्री जगन्नाथ जी के दर्शनों के लिए मंदिर में प्रवेश किया श्री जगन्नाथ जी की छवि को निहारते हुए अपने हृदय में उनको विराजमान कराया। अंत में उसने सेठ जी के दो रुपए श्री जगन्नाथ जी के चरणो में चढ़ा दिए। और बोला यह दो रुपए सेठ जी ने भेजे हैं।
उसी रात सेठ जी के पास सपने में श्री जगन्नाथ जी आए आशीर्वाद दिया और बोले सेठ तुम्हारे 98 रुपए मुझे मिल गए हैं यह कहकर श्री जगन्नाथ जी अंतर्ध्यान हो गए। सेठ जी नींद से जाग गये और सोचने लगे की मेरा नौकर तो बड़ा ईमानदार है।
पर अचानक उसे ऐसी क्या जरुरत पड़ गई थी जो उसने दो रुपए भगवान को कम चढ़ाए ? उसने दो रुपए का क्या खा लिया ? उसे ऐसी क्या जरूरत पड़ी ? ऐसा विचार सेठ जी के मन मे आता रहा।
काफी दिन बीतने के बाद भक्त किशन वापस आया और सेठजी के पास पहुंचा। सेठजी ने अपने नौकर किशन से कहा कि मेरे पैसे जगन्नाथ जी को चढ़ा दिए थे ? भक्त बोला हां मैंने पैसे चढ़ा दिए।
सेठजी ने कहा पर तुमने 98 रुपए क्यों चढ़ाए दो रुपए किस काम में प्रयोग किए। तब भक्त ने सारी बात बताई की उसने 98 रुपए से संतो को भोजन करा दिया था और ठाकुरजी को सिर्फ दो रुपए चढ़ाये थे।
सेठ सारी बात समझ गया व बड़ा खुश हुआ तथा भक्त किशन के चरणों में गिर पड़ा और बोला- "आप धन्य हो आपकी वजह से मुझे श्री जगन्नाथ जी के दर्शन यहीं बैठे-बैठे हो गए l आप की यह भेंट प्रभु जगन्नाथ जी के लिए एक अनुपम भेंट हैं।
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Nice story
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