मुंशीप्रेमचंद के अनमोल विचार

मुंशीप्रेमचंद के अनमोल विचार

मुंशीप्रेमचन्द 
हिन्दी साहित्य जगत के वो साहित्यकार थे जिन्होने हिन्दी साहित्य जगत को अपनी कृतियों से एक नयी पहचान प्रदान की। वो एक ऐसे लेखक थे जिन्होने समय के साथ अपने साहित्य को सरलता और आधुनिकता मे परिवर्तित कर हिन्दी साहित्य जगत को एक नया आयाम प्रदान किया। 

मुंशीप्रेमचंद प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी थे। वह मात्र हिन्दी के लेखक ही  नहीं अपितु  एक  महान साहित्यकार ,नाटककार ,उपन्यासकार जैसी बहुमुखी प्रतिभा के भी धनी थे। जो अपनी  कृतियों  के माध्यम से लोगो के हृदय की गहराइयों मे  उतर जाते थे। 


तो आइये ऐसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति के द्वारा कहे गए सुविचारों को अपने भीतर आत्मसात करते हैं।
  • जिन वृक्षों की जड़ें गहरी होती हैं, उन्हें बार-बार सींचने की जरूरत नहीं होती।
  • नाटक उस वक्त पास होता है, जब रसिक समाज उसे पंसद कर लेता है। बरात का नाटक उस वक्त पास होता है, जब राह चलते आदमी उसे पंसद कर लेते हैं।
  • जिस प्रकार नेत्रहीन व्यक्ति के लिए दर्पण बेकार है ,ठीक उसी प्रकार बुद्धिहीन व्यक्ति के लिए विद्या बेकार है। 
  • मनुष्य का मन और मस्तिष्क पर भय का जितना प्रभाव होता है, उतना और किसी शक्ति का नहीं। प्रेम, चिंता, हानि  यह सब मन को अवश्य दुखित करते हैं; पर यह हवा के हल्के झोंके हैं और भय प्रचंड आंधी  है।
  • देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता है उसके लिए सच्चा त्यागी होना आवश्यक है। 
  • द्वेष का मायाजाल बड़ी-बड़ी मछलियों को ही फसाता है। छोटी मछलियां या तो उसमें फंसती ही नहीं या तुरंत निकल जाती हैं। उनके लिए वह घातक जल क्रीडा की वस्तु है, भय का नहीं।
                                     पढ़िये विनम्रता पर सुविचार 
  • अनुराग यौवन ,रूप और धन से उत्पन्न नहीं होता है ,अनुराग अनुराग से ही उत्पन्न होता है। 
  • न्याय और नीति सभी लक्ष्मी के ही खिलौने हैं। इन्हें वह जैसे चाहती है, वैसे नचाती है।
  • लिखते तो वह लोग हैं, जिनके अंदर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है। जिन्होंने धन और भोग-विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वह क्या लिखेंगे?
  • चिंता एक काली दीवार की भांति चारों ओर से घेर लेती है ,जिसमे से निकलने की फिर कोई गली नहीं सूझती है।
  • दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह सम्मान उसका नहीं, अपितु उसकी दौलत का सम्मान है।
  • जीवन की दुर्घटनाओं मे अक्सर बड़े महत्व के नैतिक पहलू छिपे होते हैं।
  • नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है।
  • निराशा संभव को असंभव बना देती है।
  • व्यक्ति का अतीत चाहे जैसा भी हो , उसकी स्मृतियाँ प्रायः  सुखद होती हैं।
  • केवल कौशल से धन नहीं मिलता , इसके लिए भी त्याग और तपस्या करनी पड़ती है , शायद इतनी  साधना में ईश्वर भी मिल जाए।
  • बुद्धि अगर स्वार्थ से मुक्त हो तो हमें उसकी प्रभुता मानने मे कोई आपत्ति नहीं।
  • चापलूसी का जहरीला  प्याला आपको तब तक  नुकसान नहीं पहुँचा सकता ,जब तक आपके कान उसे  अमृत समझ कर पी न जाए।

                                                 

  • संसार के सारे नाते स्नेह के नाते है ,जहाँ स्नेह नहीं वहाँ कुछ नहीं है।
  • जीवन क्या, एक दीर्घ तपस्या थी, जिसका मुख्य उद्देश्य कर्तव्य का पालन था।
  • जो प्रेम असहिष्णु हो ,जो दूसरे दूसरे के मनोभावों का तनिक भी विचार न करे ,जो मिथ्या आरोपण करने मे तनिक भी संकोच न करे ,वह उन्माद है प्रेम नहीं।
  • दुनिया में विपत्ती से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई भी विद्यालय आजतक नहीं खुला  है।
  • क्रोध अत्यंत कठोर होता है ,वह देखना चाहता है कि मेरा एक -एक वाक्य निशाने पर बैठा है या नहीं ,वह मौन को सहन नहीं कर सकता ,ऐसा कोई घातक शस्त्र नहीं है जो उसकी  शस्त्रशाला मे न हो ,पर मौन वह मंत्र है जिसके आगे उसकी सारी शक्ति विफल हो जाती है।
  • मनुष्य का उद्धार पुत्र से नहीं ,अपने कर्मो से होता है ,यश और कीर्ति भी कर्मो से प्राप्त होती है , संतान वह सबसे कठिन परीक्षा है ,जो ईश्वर ने मनुष्य को परखने के लिए दी है ,बड़ी बड़ी आत्माएँ जो सभी परीक्षाओं मे सफल हो जाती हैं ,यहाँ ठोकर खा कर गिर पड़ती हैं।
                                      यहाँ पढिये सफलता के कुछ मंत्र 
  • किसी कश्ती पर अगर फर्ज का मल्लाह न हो तो फिर उसके लिए दरिया मे डूब जाने के सिवाय और कोई चारा नहीं। 
  • जीवन का वास्तविक सुख ,दूसरो को सुख देने मे है ,उनका सुख लूटने मे नहीं।
  • अज्ञान में सफाई है और हिम्मत है, उसके दिल और जुबान में पर्दा नहीं होता, ना कथनी और करनी में। क्या यह अफसोस की बात नहीं, ज्ञान अज्ञान के आगे सिर झुकाए?
  • स्त्री पृथ्वी की भाँति धैर्यवान् है, शांति-संपन्न है, सहिष्णु है। पुरुष में नारी के गुण आ जाते हैं, तो वह महात्मा बन जाता है। नारी में पुरुष के गुण आ जाते हैं तो वह कुलटा हो जाती है।
                                                       जानिये क्या है क्रोध 

  • जहाँ विनम्रता से काम चल जाए वहाँ उग्रता नहीं दिखानी चाहिए। 
  • पुरुष में थोड़ी-सी पशुता होती है, जिसे वह इरादा करके भी हटा नहीं सकता। वही पशुता उसे पुरुष बनाती है। विकास के क्रम से वह स्त्री से पीछे है। जिस दिन वह पूर्ण विकास को पहुंचेगा, वह भी स्त्री हो जाएगा। वात्सल्य, स्नेह, कोमलता, दया, इन्हीं आधारों पर यह सृष्टि थमी हुई है और यह स्त्रियों के गुण हैं।  
                                                

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